Sunday, 26 September 2021

हम रो कर भुगतें या हँस कर, हमारे सारे कष्ट स्वयं हमारे ही कर्मों के फल हैं ---

 

हमारे सारे कष्ट स्वयं हमारे ही कर्मों के फल हैं, जिन्हें हम रो कर भुगतें या हँस कर। पूर्व जन्मों में हमने मुक्ति के उपाय नहीं किये इस लिये यह कष्टमय जन्म लेना पड़ा। इस दुःख से स्थायी मुक्ति पाने की चेष्टा करें। कोई भी पीड़ा स्थायी नहीं है, सिर्फ हमारे ह्रदय का प्रेम और आनंद ही स्थायी हैं। किसी भी तरह की जटिलता में न पड़ें, अपनी गुरु-परम्परानुसार भक्ति, श्रद्धा और निष्ठा से अपने अनुकूल जो भी हो वह साधना करें।
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अपने विचारों को परमात्मा पर केन्द्रित कर दीजिये। हमारे माध्यम से स्वयं परमात्मा ही इस पीड़ा को भुगत रहे हैं। हमारे दुःख-सुख पाप-पुण्य सब उन्हीं के हैं। उन सच्चिदानंद भगवान परमशिव का कौन क्या बिगाड़ सकता है जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ। मृत्यु उसी की होती है जिसका जन्म होता है। हम उन परमात्मा के साथ अपनी चेतना को जोड़ें जो जन्म और मृत्यु से परे हैं। हम यह देह नहीं, शाश्वत अजर अमर चैतन्य आत्मा हैं।
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !!
ॐ तत्सत्। ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२३ सितम्बर २०२१

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