अब बेचारे कर्मफल भी क्या करेंगे? भगवान ने मुझसे बापस छीन लिए हैं ---
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मेरा इस शरीर में जन्म हुआ था सिर्फ अपने पूर्व जन्मों के कर्मफलों को भोगने के लिए, अन्य कोई प्रयोजन नहीं था। लेकिन भगवान ने अपनी महती कृपा कर के मुझे मुक्त होने का उपाय भी बता दिया, और पूरी छूट भी दे दी कि उसे मानो या न मानो। यह मेरे और भगवान के मध्य का निजी मामला है। भगवान से मुझे एक ही शिकायत थी कि उन्होने मुझे बहुत कम बुद्धि दी। जब मैंने उनसे यह शिकायत की तो उन्होने जो कुछ भी थोड़ी-बहुत बुद्धि दी थी, वह भी बापस छीन ली है। चलो पीछा छूटा, अब तो मन, अहंकार और चित्त भी भगवान ने छीन लिए हैं। अपना कहने को मेरे पास अब कुछ भी नहीं है।
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बेचारे कर्मफल भी क्या करेंगे? वे भी भगवान ने मुझसे छीन लिए हैं। सिर पर पाप की एक बहुत भारी गठरी थी, जो अब भगवान के पास है, उनका सामान मुझे बापस नहीं चाहिए। कर्ता और भोक्ता अब तो भगवान स्वयं हो गए हैं। भगवान ने साफ साफ कहा है कि तुम दिन-रात मेरा चिंतन करो, तुम्हें सीधे यहीं बुला लूँगा, और बापस लौटने के सारे मार्ग भी बंद कर दूंगा।
बहुत सस्ता सौदा है। ठीक है, स्वीकार है। उनके लिए सब कुछ संभव है --
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
"मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन॥"
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नारायण नारायण !! इस संसार में पाप की एक बहुत भारी गठरी लेकर आए थे, जिसे भगवान ने बलात् छीन ली है। अब यह उन्हीं का सामान हो गया है, जो मुझे बापस नहीं चाहिए। हे प्रभु, आपको नमन है ---
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"स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा:॥
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्॥
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु ।
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्॥
पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव॥
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्॥"
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जय हो प्रभु आप की जय हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ सितंबर २०२१
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