Sunday 26 September 2021

सनातन धर्म और भारत के उत्थान को अब कोई नहीं रोक सकता ---

 

सनातन धर्म और भारत के उत्थान को अब कोई नहीं रोक सकता ---
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जैसे-जैसे मनुष्य की समझ में वृद्धि होगी, प्रबुद्ध मनीषियों के हृदय में सनातन धर्म की चेतना जागृत होगी। पिछले काल-खंड में सनातन धर्म के ज्ञान में कमी का कारण, मनुष्य की चेतना का ह्रास था, अन्य कोई कारण नहीं। वह समय ही खराब था। इस समय कालचक्र ऊर्ध्वगामी है, अतः अगले कई हजार वर्षों तक उन्नति ही उन्नति है, कोई अवनति नहीं। मनुष्य जाति की समझ भी क्रमशः बढ़ रही है और ज्ञान भी।
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पूरी सृष्टि विष्णु-नाभि की परिक्रमा करती है। हमारी यह पृथ्वी जिस सूर्य का ग्रह है, वह सूर्य चौबीस हज़ार वर्ष में एक बार विष्णु-नाभि के समीपतम होता है, उस समय मनुष्य की चेतना अपने उच्चतम शिखर पर होती है। इसके ठीक बारह हज़ार वर्ष पश्चात जब वह विष्णु-नाभि से अधिकतम दूरी पर होता है तब मनुष्य की चेतना निम्नतम स्तर पर होती है। यह कालचक्र है।
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परमात्मा की और धर्म की सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारत में हुई है, अतः भारत और सनातन धर्म की चेतना को अब कोई नहीं रोक सकता। एक दुर्धर्ष आध्यात्मिक शक्ति इसके उत्थान में लगी हुई है। हर व्यक्ति को सत्यनिष्ठ और धर्मनिष्ठ होना ही पड़ेगा, अन्यथा उसके समक्ष अपनी प्राकृतिक मृत्यु के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है।
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सनातन धर्म पूरी सृष्टि का धर्म है। सनातन धर्म का लक्ष्य है -- भगवत्-प्राप्ति। आत्मा शाश्वत है, जिस पर माया का आवरण और विक्षेप है। उस माया के वशीभूत होकर मनुष्य का पतन होता है और उसे दुःखों की प्राप्ति होती है। उसके कर्मफल उसके बारंबार पुनर्जन्म के हेतु बनते हैं। अपने दुःखों से त्रस्त आकर वह उनसे मुक्त होने के उपाय ढूँढता है और आध्यात्म का आश्रय लेकर भगवान की आराधना/उपासना करता है। भगवत्-प्राप्ति तक यह चक्र चलता ही रहता है। सृष्टि का संचालन भगवान की प्रकृति अपने नियमानुसार करती है। नियमों को न समझना हमारा अज्ञान है। भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - " इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥"
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रामायण और महाभारत का स्वाध्याय सभी को किशोरावस्था से ही करना चाहिए। धर्म के तत्व को इनमें पूरी तरह बहुत अच्छे से समझाया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णुसहस्त्रनाम, शिवसहस्त्रनाम आदि अनेक स्तुति, प्रार्थनाएँ और ज्ञान महाभारत में हैं। रामायण भी अपने आप में एक सम्पूर्ण ग्रंथ है।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
१८ सितंबर २०२१

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