प्रकृति अपने नियमों के अनुसार चलती है| प्रकृति के कार्य में भगवान कभी हस्तक्षेप नहीं करते| जब तक प्रारब्ध कर्मफल अवशिष्ट हैं, तब तक हम जीवित रहेंगे| प्रारब्ध कर्मों के समाप्त होते ही मृत्यु , और संचित कर्मों को भोगने के लिए पुनर्जन्म सुनिश्चित है|
.
भगवान ने स्वयं को भक्तों के आधीन अर्थात पराधीन कर रखा है| जो स्वयं पराधीन हैं वे दूसरों को मुक्त नहीं कर सकते| हमारी मुक्ति हमारे ही हाथ में है, भगवान किसी को मुक्त नहीं करते|
.
जीवन और मृत्यु दोनों ही प्रकाश और अन्धकार के खेल हैं| मृत्यु के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं है, वैसे ही जैसे अन्धकार के बिना प्रकाश का| सृष्टि द्वंद्वात्मक यानि दो विपरीत गुणों से बनी है| जीवन और मृत्यु भी दो विपरीत गुण हैं| जीवात्मा कभी मरती नहीं, सिर्फ अपना चोला बदलती है|
भगवान श्रीकृष्ण का वचन है ....
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृहणाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||"
जिस प्रकार मनुष्य फटे हुए जीर्ण वस्त्र उतार कर नए वस्त्र धारण कर लेता है, वैसे ही यह देही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण कर लेती है|
.
जीवात्मा सदा शाश्वत है| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ...
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः| न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारूतः||"
जीवात्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती"|
.
भगवान श्रीकृष्ण ने ही कहा है ....
"न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे"||
जीवात्मा अनादि व अनन्त है| यह न कभी पैदा होता है और न मरता है| यह कभी होकर नहीं रहता और फिर कभी नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है| यह (अज) अजन्मा अर्थात् अनादि, नित्य और शाश्वत सनातन है|
.
वेदान्त की दृष्टि से हम स्वयं से ही विभिन्न रूपों में मिलते रहते हैं| कहीं कोई मृत्यु नहीं है| जीवन ही जीवन है| किसी भी तरह का शोक करना मेरी अज्ञानता थी|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ सितंबर २०२०
No comments:
Post a Comment