Sunday 26 September 2021

योगियों की दृष्टि में पिंडदान और श्राद्ध क्या है? ---

 

योगियों की दृष्टि में पिंडदान और श्राद्ध क्या है? ---
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हमारे सूक्ष्म शरीर के मूलाधार-चक्र में स्थित कुंडलिनी महाशक्ति ही पिंड, और सहस्त्रार-चक्र में अनुभूत कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म - "विष्णुपद" है। श्रद्धा से मैं इसे गुरु महाराज के चरण-कमल कहता हूँ। गुरु-प्रदत्त विधि से बार-बार कुंडलिनी महाशक्ति को मूलाधार-चक्र से उठाकर सहस्त्रार में भगवान विष्णु के चरण-कमलों (विष्णुपद) में अर्पित करना यथार्थ "पिंडदान" है। इसे श्रद्धा के साथ करना "श्राद्ध" है।
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गुरुकृपा से कुंडलिनी महाशक्ति का सहस्त्रार से भी ऊपर उठकर अनंत महाकाश से परे परमशिव में मिलन जीवनमुक्ति और मोक्ष है। सहस्त्रार से नीचे की ओर एक सूक्ष्म ज्योतिर्मयी धारा गिरती है जिसे पिण्डोदक क्रिया कहते है। जब यह दृढ़ अनुभूति हो जाये कि मैं यह भौतिक शरीर नहीं हूँ, तब मान लीजिये कि पिंडदान हो गया।
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यह एक गुरुमुखी विद्या है जो ब्रहमनिष्ठ सिद्ध गुरु द्वारा अपने शिष्य को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने बैठाकर सिखाई जाती है। इसे सद्गुरु की कृपा से ही समझा जा सकता है, अन्यथा नहीं। यहाँ इसका वर्णन सिर्फ रुचि जागृत करने के लिए ही किया गया है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२२ सितंबर २०२१

1 comment:

  1. मैं तो एक सेवक मात्र हूँ, जिसका कार्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना है, और कुछ भी नहीं। मेरा कोई कर्तव्य नहीं है। मुझे कुछ भी नहीं आता। जो मेरे स्वामी करवाएँगे वही मुझसे होगा। जो कुछ भी करना है वह मेरे स्वामी ही करेंगे. मैं तो उनका एक उपकरण हूँ। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। मेरे स्वामी स्वयं परमात्मा हैं। मैं उनके साथ एक और उन्हीं का परमप्रेम हूँ। मैं पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म से परे हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
    🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹

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