Sunday 26 September 2021

भगवान उसी को स्वीकार करते हैं जो सिर्फ भगवान को ही स्वीकार करता है; भगवान वरण करने से प्राप्त होते हैं, किसी अन्य साधन से नहीं ---

 

भगवान उसी को स्वीकार करते हैं जो सिर्फ भगवान को ही स्वीकार करता है; भगवान वरण करने से प्राप्त होते हैं, किसी अन्य साधन से नहीं ---
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अधर्म से उपार्जित धन का दान, पुण्यदायी नहीं होता। असत्यवादन से दग्ध हुई वाणी से की हुई प्रार्थना, स्तुति और जप निष्फल होते हैं। भगवान उसी को प्राप्त होते हैं जिसे भगवान स्वयं स्वीकार कर लेते हैं। भगवान उसी को स्वीकार करते हैं जो सिर्फ भगवान को ही स्वीकार करता है। महत्व उनको पाने की घनीभूत अभीप्सा और भक्ति का है, अन्य किसी चीज का नहीं।
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असली भक्त को तो मोक्ष की इच्छा भी नहीं हो सकती, वह प्रभु को ही पाना चाहता है, अतः प्रभु भी उसे ही पाना चाहते हैं। एक ही साधक को एक साथ "मुमुक्षुत्व" और "फलार्थित्व" नहीं हो सकते। जो फलार्थी हैं उन्हें फल मिलता है, और जो मुमुक्षु हैं उन्हें मोक्ष मिलता है। इस प्रकार जो जिस तरह से भगवान को भजते हैं उनको भगवान भी उसी तरह से भजते हैं। भगवान में कोई राग-द्वेष नहीं होता, जो उनको जैसा चाहते हैैं, वैसा ही अनुग्रह वे भक्त पर करते हैं। भगवान वरण करने से प्राप्त होते हैं, किसी अन्य साधन से नहीं।
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥४:११॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - "जो मुझे जैसे भजते हैं, मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ; हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं॥"
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भारत की जय हो, विजय हो। भारत अपने द्वीगुणित परम वैभव को प्राप्त करे और एक आध्यात्मिक सत्यनिष्ठ राष्ट्र बने। सब तरह के असत्य और अंधकार का नाश हो, धर्म की पुनर्स्थापना हो व सत्य की विजय हो।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२१

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