Sunday, 26 February 2017

हे जगन्माता, हे भगवती, मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी कृपा पर आश्रित हूँ ....

हे जगन्माता, हे भगवती, मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी कृपा पर आश्रित हूँ| धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कुछ भी मेरी क्षमता में नहीं है| मेरे में न तो कोई विवेक है और न शक्ति| अब मेरे वश में कुछ भी नहीं है| जो करना है वह तुम ही करो, मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य आदि का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है| अपनी सृष्टि के लिए इस देह का जो भी उपयोग करना चाहो वह तुम ही करो| मेरी कोई इच्छा नहीं है| तुम चाहो तो इस देह को इसी क्षण नष्ट कर सकती हो| मेरी करुण पुकार तुम्हें सुननी ही होगी|
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हे भगवती, तुम्ही एकमात्र कर्ता हो| तुम्हीं इन पैरों से चल रही हो, इन हाथों से तुम्हीं कार्य कर रही हो, इस ह्रदय में तुम्हीं धड़क रही हो, ये साँसें भी तुम्ही ले रही हो, इन विचारों से जगत की सृष्टि संरक्षण और संहार भी तुम्ही कर रही हो| हे जगन्माता, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो| यह पानी का बुलबुला तुम्हारे ही अनंत महासागर में तैर रहा है| इसे अपने साथ एक करो| इस बुलबुले में कोई स्वतंत्र क्षमता नहीं है|
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हे भगवती, इस जीवन में मैं जितने भी लोगों से मिला हूँ और जहाँ कहीं भी गया हूँ, तुम्हारे ही विभिन रूपों से मिला हूँ, तुम्हारे में ही विचरण करता आया हूँ, अन्य कोई है ही नहीं| यह 'मैं' होना एक भ्रम है, इस पृथकता के बोध को समाप्त करो| हे भगवती, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो, अब तुम्हारा ही आश्रय है, तुम ही मेरी गति हो|
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||

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