साधकों के लिए रात्रि को सोने से पहिले का समय सर्वश्रेष्ठ होता है .......
इसके लिए तैयारी करनी पडती है .....
(1) सायंकालीन आहार शीघ्र लें |
(2) पूर्व या उत्तर की और मुंह करके बिस्तर पर ही कम्बल के आसन पर बैठकर सद्गुरु, परमात्मा और सब संतों को प्रणाम करें|
(3) सद्गुरु प्रदत्त या इष्ट देव के मन्त्र का तब तक जाप करें जब तक आपका ह्रदय प्रेम से नहीं भर उठे| इतना जाप करें कि आप प्रेममय हो जाएँ| जीवन में एकमात्र महत्व उस प्रेम का ही है जो परमात्मा के प्रति आपके अंतर में है|
(4) मूलाधार से आज्ञाचक्र तक (कुछ दिनों बाद सहस्त्रार तक) और बापस क्रमशः हरेक चक्र पर ओम का मानसिक जाप खूब देर तक करें जब तक आप को संतुष्टि न मिले| समापन आज्ञाचक्र पर ही करें|
(5) अपनी सब चिंताएं और समस्याएँ जगन्माता को सौंपकर निश्चिन्त होकर वैसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक माँ की गोद में सोता है| ध्यान रहे आप बिस्तर पर नहीं, माँ की गोद में सो रहे हैं| पूरी रात सोते जागते कैसे भी हो, जगन्माता की प्रेममय चेतना में ही रहें| संसार में जगन्माता को छोड़कर अन्य कोई भी आपका नहीं है| उनका साथ शाश्वत है जो जन्म से पूर्व, मृत्यु के बाद और निरंतर अनवरत आपके साथ है|
(6) प्रातःकाल उठते ही आज्ञाचक्र पर सद्गुरु को प्रणाम कर (गुरु पादुका स्तोत्र में दिये) वाग्भव बीजमंत्र का जाप करें| अनाहत चक्र पर जगन्माता या इष्टदेव का मोहिनी बीजमंत्र या गुरु प्रदत्त मन्त्र के साथ ध्यान करे| साथ साथ आज्ञाचक्र यानि कूटस्थ पर गुरु की चेतना भी बनी रहे|
(7) शौचादि से निवृत होकर कुछ देर व्यायाम करें जैसे टहलना, दौड़ना, सूर्यनमस्कार व महामुद्रा आदि| फिर प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम आदि कर अपने साधना कक्ष में पूर्व या उत्तर की और मुंह कर कम्बल के आसन पर बैठ जाओ| मेरुदंड सदा उन्नत रहे इसका ध्यान रहे| ध्यान खेचरी मुद्रा में ही करें| यदि खेचरी मुद्रा नहीं भी कर सकते हो तो प्रयासपूर्वक जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखें| धीरे धीरे अभ्यास हो जयेगा और खेचरी भी होने लगेगी| सद्गुरु, इष्टदेव और सब संतों को प्रणाम कर प्रार्थना करें और क्रमशः सब चक्रों पर खूब देर तक ओम का जाप करें| समापन आज्ञाचक्र पर कर वहां खूब देर तक ओम का ध्यान करें| अजपाजाप का अभ्यास करें और गुरु प्रदत्त साधना करें| ध्यान के बाद योनीमुद्रा का अभ्यास करें| चक्रों पर ध्यान के लिए और वैसे भी साधना के लिए भागवत मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है| ध्यान के बाद तुरंत आसन ना छोड़ें, कुछ देर बैठे रहें फिर सद्गुरु को प्रणाम करते हुए सर्वस्व के कल्याण की प्रार्थना के साथ समापन करें|
(8) पूरे दिन भगवान का स्मरण रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण शुरू कर दें| मेरुदंड यानि कमर सदा सीधी रखें| याद आते ही कमर सीधी कर लें| दोपहर को यदि समय मिले तो फिर कुछ देर चक्रों में ओम का जाप कर लें| भागवत मन्त्र का यथासंभव खूब जाप करें|
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धीरे धीरे आप की चेतना भगवान से युक्त हो जायेगी| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी न मांगे| उन्हें पता है कि आपको क्या चाहिए| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| आप भगवान से इतना कुछ माँगते हो, भगवान ने ही आपको सब कुछ दिया है तो क्या आप अपना पूर्ण प्रेम भगवान को नहीं दे सकते?
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||
इसके लिए तैयारी करनी पडती है .....
(1) सायंकालीन आहार शीघ्र लें |
(2) पूर्व या उत्तर की और मुंह करके बिस्तर पर ही कम्बल के आसन पर बैठकर सद्गुरु, परमात्मा और सब संतों को प्रणाम करें|
(3) सद्गुरु प्रदत्त या इष्ट देव के मन्त्र का तब तक जाप करें जब तक आपका ह्रदय प्रेम से नहीं भर उठे| इतना जाप करें कि आप प्रेममय हो जाएँ| जीवन में एकमात्र महत्व उस प्रेम का ही है जो परमात्मा के प्रति आपके अंतर में है|
(4) मूलाधार से आज्ञाचक्र तक (कुछ दिनों बाद सहस्त्रार तक) और बापस क्रमशः हरेक चक्र पर ओम का मानसिक जाप खूब देर तक करें जब तक आप को संतुष्टि न मिले| समापन आज्ञाचक्र पर ही करें|
(5) अपनी सब चिंताएं और समस्याएँ जगन्माता को सौंपकर निश्चिन्त होकर वैसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक माँ की गोद में सोता है| ध्यान रहे आप बिस्तर पर नहीं, माँ की गोद में सो रहे हैं| पूरी रात सोते जागते कैसे भी हो, जगन्माता की प्रेममय चेतना में ही रहें| संसार में जगन्माता को छोड़कर अन्य कोई भी आपका नहीं है| उनका साथ शाश्वत है जो जन्म से पूर्व, मृत्यु के बाद और निरंतर अनवरत आपके साथ है|
(6) प्रातःकाल उठते ही आज्ञाचक्र पर सद्गुरु को प्रणाम कर (गुरु पादुका स्तोत्र में दिये) वाग्भव बीजमंत्र का जाप करें| अनाहत चक्र पर जगन्माता या इष्टदेव का मोहिनी बीजमंत्र या गुरु प्रदत्त मन्त्र के साथ ध्यान करे| साथ साथ आज्ञाचक्र यानि कूटस्थ पर गुरु की चेतना भी बनी रहे|
(7) शौचादि से निवृत होकर कुछ देर व्यायाम करें जैसे टहलना, दौड़ना, सूर्यनमस्कार व महामुद्रा आदि| फिर प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम आदि कर अपने साधना कक्ष में पूर्व या उत्तर की और मुंह कर कम्बल के आसन पर बैठ जाओ| मेरुदंड सदा उन्नत रहे इसका ध्यान रहे| ध्यान खेचरी मुद्रा में ही करें| यदि खेचरी मुद्रा नहीं भी कर सकते हो तो प्रयासपूर्वक जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखें| धीरे धीरे अभ्यास हो जयेगा और खेचरी भी होने लगेगी| सद्गुरु, इष्टदेव और सब संतों को प्रणाम कर प्रार्थना करें और क्रमशः सब चक्रों पर खूब देर तक ओम का जाप करें| समापन आज्ञाचक्र पर कर वहां खूब देर तक ओम का ध्यान करें| अजपाजाप का अभ्यास करें और गुरु प्रदत्त साधना करें| ध्यान के बाद योनीमुद्रा का अभ्यास करें| चक्रों पर ध्यान के लिए और वैसे भी साधना के लिए भागवत मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है| ध्यान के बाद तुरंत आसन ना छोड़ें, कुछ देर बैठे रहें फिर सद्गुरु को प्रणाम करते हुए सर्वस्व के कल्याण की प्रार्थना के साथ समापन करें|
(8) पूरे दिन भगवान का स्मरण रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण शुरू कर दें| मेरुदंड यानि कमर सदा सीधी रखें| याद आते ही कमर सीधी कर लें| दोपहर को यदि समय मिले तो फिर कुछ देर चक्रों में ओम का जाप कर लें| भागवत मन्त्र का यथासंभव खूब जाप करें|
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धीरे धीरे आप की चेतना भगवान से युक्त हो जायेगी| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी न मांगे| उन्हें पता है कि आपको क्या चाहिए| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| आप भगवान से इतना कुछ माँगते हो, भगवान ने ही आपको सब कुछ दिया है तो क्या आप अपना पूर्ण प्रेम भगवान को नहीं दे सकते?
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||
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