Sunday 26 February 2017

साधकों के लिए रात्रि को सोने से पहिले का समय सर्वश्रेष्ठ होता है ......

साधकों के लिए रात्रि को सोने से पहिले का समय सर्वश्रेष्ठ होता है .......
इसके लिए तैयारी करनी पडती है .....

(1) सायंकालीन आहार शीघ्र लें |
(2) पूर्व या उत्तर की और मुंह करके बिस्तर पर ही कम्बल के आसन पर बैठकर सद्गुरु, परमात्मा और सब संतों को प्रणाम करें|
(3) सद्गुरु प्रदत्त या इष्ट देव के मन्त्र का तब तक जाप करें जब तक आपका ह्रदय प्रेम से नहीं भर उठे| इतना जाप करें कि आप प्रेममय हो जाएँ| जीवन में एकमात्र महत्व उस प्रेम का ही है जो परमात्मा के प्रति आपके अंतर में है|
(4) मूलाधार से आज्ञाचक्र तक (कुछ दिनों बाद सहस्त्रार तक) और बापस क्रमशः हरेक चक्र पर ओम का मानसिक जाप खूब देर तक करें जब तक आप को संतुष्टि न मिले| समापन आज्ञाचक्र पर ही करें|
(5) अपनी सब चिंताएं और समस्याएँ जगन्माता को सौंपकर निश्चिन्त होकर वैसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक माँ की गोद में सोता है| ध्यान रहे आप बिस्तर पर नहीं, माँ की गोद में सो रहे हैं| पूरी रात सोते जागते कैसे भी हो, जगन्माता की प्रेममय चेतना में ही रहें| संसार में जगन्माता को छोड़कर अन्य कोई भी आपका नहीं है| उनका साथ शाश्वत है जो जन्म से पूर्व, मृत्यु के बाद और निरंतर अनवरत आपके साथ है|
(6) प्रातःकाल उठते ही आज्ञाचक्र पर सद्गुरु को प्रणाम कर (गुरु पादुका स्तोत्र में दिये) वाग्भव बीजमंत्र का जाप करें| अनाहत चक्र पर जगन्माता या इष्टदेव का मोहिनी बीजमंत्र या गुरु प्रदत्त मन्त्र के साथ ध्यान करे| साथ साथ आज्ञाचक्र यानि कूटस्थ पर गुरु की चेतना भी बनी रहे|
(7) शौचादि से निवृत होकर कुछ देर व्यायाम करें जैसे टहलना, दौड़ना, सूर्यनमस्कार व महामुद्रा आदि| फिर प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम आदि कर अपने साधना कक्ष में पूर्व या उत्तर की और मुंह कर कम्बल के आसन पर बैठ जाओ| मेरुदंड सदा उन्नत रहे इसका ध्यान रहे| ध्यान खेचरी मुद्रा में ही करें| यदि खेचरी मुद्रा नहीं भी कर सकते हो तो प्रयासपूर्वक जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखें| धीरे धीरे अभ्यास हो जयेगा और खेचरी भी होने लगेगी| सद्गुरु, इष्टदेव और सब संतों को प्रणाम कर प्रार्थना करें और क्रमशः सब चक्रों पर खूब देर तक ओम का जाप करें| समापन आज्ञाचक्र पर कर वहां खूब देर तक ओम का ध्यान करें| अजपाजाप का अभ्यास करें और गुरु प्रदत्त साधना करें| ध्यान के बाद योनीमुद्रा का अभ्यास करें| चक्रों पर ध्यान के लिए और वैसे भी साधना के लिए भागवत मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है| ध्यान के बाद तुरंत आसन ना छोड़ें, कुछ देर बैठे रहें फिर सद्गुरु को प्रणाम करते हुए सर्वस्व के कल्याण की प्रार्थना के साथ समापन करें|
(8) पूरे दिन भगवान का स्मरण रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण शुरू कर दें| मेरुदंड यानि कमर सदा सीधी रखें| याद आते ही कमर सीधी कर लें| दोपहर को यदि समय मिले तो फिर कुछ देर चक्रों में ओम का जाप कर लें| भागवत मन्त्र का यथासंभव खूब जाप करें|
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धीरे धीरे आप की चेतना भगवान से युक्त हो जायेगी| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी न मांगे| उन्हें पता है कि आपको क्या चाहिए| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| आप भगवान से इतना कुछ माँगते हो, भगवान ने ही आपको सब कुछ दिया है तो क्या आप अपना पूर्ण प्रेम भगवान को नहीं दे सकते?
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||

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