Sunday, 26 February 2017

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या ........

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या ........
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'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मेव नापरः' ........ भगवत्पाद जगद्गुरू शंकराचार्य का यह कथन उनका अपना अनुभव है| उन्होंने समाधी की उच्चतम अवस्था में इस सत्य को अनुभूत किया| जिसने इसे अनुभूत किया उसके लिए तो यह सत्य है, और जो सिर्फ बुद्धि से या पूर्वाग्रह से कह रहा है उसके लिए असत्य है|
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आज के भौतिक विज्ञानी कह रहे हैं कि पदार्थ का कोई अस्तित्व नहीं है, यह घनीभुत उर्जा ही है जो अपनी आवृतियों द्वारा पदार्थ के रूप में व्यक्त हो रही है| किस अणु में कितने इलेक्ट्रोन हैं वे तय करते हैं कि पदार्थ का बाह्य रूप क्या हो| अंततः ऊर्जा भी एक विचार मात्र है ---- सृष्टिकर्ता के मन का एक विचार या संकल्प|
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यह बात वैज्ञानिक दृष्टी से तो सत्य है पर जो इसे नहीं समझता उसके लिए असत्य| आज के वैज्ञानिक तो सत्य अपनी प्रयोगशालाओं में सिद्ध कर रहे हैं उसी सत्य को भारतीय ऋषियों ने समाधी की अवस्था में समझा| इस सत्य को आचार्य शंकर ने चेतना के जिस स्तर को उपलब्ध होकर कहा उसे हम चेतना के उस स्तर पर जाकर ही समझ सकते हैं| बुद्धि द्वारा किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते| धन्यवाद|
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ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||

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