यह "मनुवाद" क्या है ? ......
-----------------------
एक समय था जब साम्यवादी (मार्क्सवादी) लोग किसी को गाली देते तो उसको "प्रतिक्रियावादी", "पूंजीवादी", "फासिस्ट" और "बुर्जुआ" आदि शब्दों से विभूषित करते| ये उनकी बड़ी से बड़ी गालियाँ थीं| किसी की प्रशंसा करते तो उसको "प्रगतिवादी"और 'मानवतावादी" कहते|
फिर समय आया जब कोंग्रेसी लोग किसी को गाली देते तो उसको "साम्प्रदायिक" कहते| किसी की प्रशंसा में उनका सबसे बड़ा शब्द था ... "धर्मनिरपेक्ष"|
भारतीय जनसंघ (वर्तमान भाजपा) वाले जब साम्यवादियों को गाली देते तो "पंचमांगी" कहते, जो उनकी बड़ी से बड़ी गाली थी|
फिर एक शब्द चला ..... "समाजवादी" जिसको कभी कोई परिभाषित नहीं कर पाया| जहाँ तक मुझे याद है इस शब्द को लोकप्रिय डा.राममनोहर लोहिया ने किया था, फिर श्रीमती इंदिरा गाँधी को भी यह अत्यंत प्रिय था, जिन्होंने संविधान संशोधित कर भारत को समाजवादी धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया| आजकल समाजवादी बोलते ही श्री मुलायम सिंह यादव की छवि सामने आती है| फिर और भी कई वाद चले जैसे "राष्ट्रवाद", "बहुजन समाजवाद" आदि|
पर आजकल एक नई गाली और एक नया वाद चला है और वह है ..... "मनुवाद"|
आजकल चाहे "बहुजन समाजवादी" हों या कांग्रेसी हों, किसी की भी बुराई करते हैं तो उसे "मनुवादी" कहते हैं|
मैं मनुस्मृति को पिछले पचास वर्षों से पढ़ता आया हूँ| उस पर लिखे अनेक विद्वानों के भाष्य भी पढ़े हैं| मनुस्मृति भारत में हज़ारों वर्षों तक एक संविधान की तरह रही है| मुझे तो उसमें कहीं कोई बुराई नहीं दिखी| वह तो सृष्टि के आदि से है| हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए अंग्रेजों ने उसमें कई बातें प्रक्षिप्त कर दी थीं| पर उन प्रक्षिप्त अंशों को निकाला जा रहा है| मनु महाराज तो एक क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने एक नई सर्वमान्य व्यवस्था दी जो हज़ारों वर्षों से हैं| उसमें कहीं भी कोई जातिवाद या भेदभाव वाली बात नहीं है|
पता नहीं आजकल के इन तथाकथित राजनयिकों को मनुस्मृति का अध्ययन किये बिना ही उसमें क्या "जातिवाद" या "सम्प्रदायवाद" दिखाई दे रहा है जो किसी की निंदा करने के लिए "जातिवादी" "साम्प्रदायिक" और "मनुवादी" कहते हैं|
सादर धन्यवाद|
जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम!
-----------------------
एक समय था जब साम्यवादी (मार्क्सवादी) लोग किसी को गाली देते तो उसको "प्रतिक्रियावादी", "पूंजीवादी", "फासिस्ट" और "बुर्जुआ" आदि शब्दों से विभूषित करते| ये उनकी बड़ी से बड़ी गालियाँ थीं| किसी की प्रशंसा करते तो उसको "प्रगतिवादी"और 'मानवतावादी" कहते|
फिर समय आया जब कोंग्रेसी लोग किसी को गाली देते तो उसको "साम्प्रदायिक" कहते| किसी की प्रशंसा में उनका सबसे बड़ा शब्द था ... "धर्मनिरपेक्ष"|
भारतीय जनसंघ (वर्तमान भाजपा) वाले जब साम्यवादियों को गाली देते तो "पंचमांगी" कहते, जो उनकी बड़ी से बड़ी गाली थी|
फिर एक शब्द चला ..... "समाजवादी" जिसको कभी कोई परिभाषित नहीं कर पाया| जहाँ तक मुझे याद है इस शब्द को लोकप्रिय डा.राममनोहर लोहिया ने किया था, फिर श्रीमती इंदिरा गाँधी को भी यह अत्यंत प्रिय था, जिन्होंने संविधान संशोधित कर भारत को समाजवादी धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया| आजकल समाजवादी बोलते ही श्री मुलायम सिंह यादव की छवि सामने आती है| फिर और भी कई वाद चले जैसे "राष्ट्रवाद", "बहुजन समाजवाद" आदि|
पर आजकल एक नई गाली और एक नया वाद चला है और वह है ..... "मनुवाद"|
आजकल चाहे "बहुजन समाजवादी" हों या कांग्रेसी हों, किसी की भी बुराई करते हैं तो उसे "मनुवादी" कहते हैं|
मैं मनुस्मृति को पिछले पचास वर्षों से पढ़ता आया हूँ| उस पर लिखे अनेक विद्वानों के भाष्य भी पढ़े हैं| मनुस्मृति भारत में हज़ारों वर्षों तक एक संविधान की तरह रही है| मुझे तो उसमें कहीं कोई बुराई नहीं दिखी| वह तो सृष्टि के आदि से है| हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए अंग्रेजों ने उसमें कई बातें प्रक्षिप्त कर दी थीं| पर उन प्रक्षिप्त अंशों को निकाला जा रहा है| मनु महाराज तो एक क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने एक नई सर्वमान्य व्यवस्था दी जो हज़ारों वर्षों से हैं| उसमें कहीं भी कोई जातिवाद या भेदभाव वाली बात नहीं है|
पता नहीं आजकल के इन तथाकथित राजनयिकों को मनुस्मृति का अध्ययन किये बिना ही उसमें क्या "जातिवाद" या "सम्प्रदायवाद" दिखाई दे रहा है जो किसी की निंदा करने के लिए "जातिवादी" "साम्प्रदायिक" और "मनुवादी" कहते हैं|
सादर धन्यवाद|
जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम!
No comments:
Post a Comment