हमारे शरीर का भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है, सहस्त्रार -- उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग (शिखास्थल) -- पश्चिम दिशा है, और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है।
सूक्ष्म देह में सहस्त्रार से परे का क्षेत्र -- परा है। (कुछ रहस्य की भी बातें हैं, जिनकी चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जा सकती)
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कहीं कोई पृथकता नहीं है। भगवान के परमप्रेममय रूप पर हम सदा ध्यान करें। जब हम कहते हैं कि पूर्व दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है अंतर्दृष्टि भ्रूमध्य में रख कर ध्यान करो। जब हम कहे हैं कि उत्तर दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है सहस्त्रार पर अंतर्दृष्टि रख कर ध्यान करो। दक्षिण दिशा में ध्यान मत करो का अर्थ है -- आज्ञा चक्र से नीचे दृष्टी मत रखो ध्यान के समय।
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परमशिव का ध्यान -- सूक्ष्म देह द्वारा देहातीत अवस्था में अनुभूत हो रही अनंतता में और उस से भी परे होता है। ये अनुभूतियाँ बड़ी दुर्लभ हैं, जो अनेक जन्मों के पुण्यों से प्राप्त होती हैं।
ॐ तत्सत् !!
३० अक्तूबर २०२१
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