Thursday, 30 October 2025

जहाँ पर हम हैं, वहीं पर भगवान भी हर समय हमारे साथ एक हैं ---

 जहाँ पर हम हैं, वहीं पर भगवान भी हर समय हमारे साथ एक हैं। वे हमारे बिना नहीं रह सकते। जिस आसन में स्थिर होकर हम सुख से बैठ सकते हैं - वही योगासन है। जिस आसन पर हम बैठे हैं, वहाँ से अनंत ब्रह्मांड में जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है, वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड हम स्वयं हैं, यह नश्वर देह नहीं।

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इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ओंकार रूपी एक नाद निःसृत हो रहा है। उस अनाहत-नाद का निरंतर श्रवण सर्वश्रेष्ठ जप है। अनाहत नाद का निरंतर श्रवण - प्राण तत्व की चंचलता को स्थिर करता है, जिसके बिना मन स्थिर नहीं हो सकता।
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कोई कामना, मांग, या अपेक्षा न रहे। आत्मा की अभीप्सा - परमप्रेम में रूपांतरित हो जाये। इस प्रेम में कोई भी अन्य नहीं है। वह असीम परमप्रेम और अनंत आनंद ही परमात्मा है, जो हम स्वयं हैं।
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इस संसार चक्र में बार बार हम आने को बाध्य हैं क्योंकि हम देह की चेतना से जुड़े हुए हैं। श्रुति भगवती कहती है - "अयमात्मा ब्रह़म्", अर्थात जो आत्मा है, वही ब्रह्म है, वही ईश्वर है, वही हम हैं। हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं। इसी आत्मा का निरंतर चिंतन करो। स्वयं की पृथकता के बोध को उसमें समर्पित कर दो। यही कल्याण का मोक्ष-मार्ग है।
ॐ तत्सत् !!
३० अक्तूबर २०२१

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