मैं धर्म-अधर्म, और पाप-पुण्य से परे हूँ, मेरा कोई कर्तव्य नहीं है। इस शरीर की हर सांस भगवान स्वयं ले रहे हैं। मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, सम्पूर्ण अस्तित्व उन्हीं का है। सारे पाप-पुण्य, कमियाँ, अवगुण-गुण, बुराइयाँ-अच्छाइयाँ, सब उन्हीं की हैं। जो कुछ भी है, वह सब वे स्वयं हैं। मैं और मेरे आराध्य एक है। कहीं कोई भेद नहीं है।
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अनेक साधनाएँ हैं जो सभी बहुत अधिक प्रभावशाली हैं। भगवान मुझे निमित्त-मात्र बना कर वो ही साधना अपने इस उपकरण से कर रहे हैं जो इसके सर्वाधिक अनुकूल है। मेरी कोई औकात नहीं है कुछ साधना करने की। भगवान स्वयं अपनी उपासना स्वयं कर रहे हैं। मैं यह शरीर महाराज नहीं, सर्वव्यापक, अनंत, सर्वस्व, और सच्चिदानंद परमशिव के साथ एक हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मई २०२३
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