शांति स्थापित होने का समय व्यतीत हो गया है, अब महाविनाश निश्चित है। इस पृथ्वी पर सनातन स्थापित होने जा रहा है। केवल और केवल भगवान की कृपा ही अपने भक्तों की रक्षा करेगी। यह समय कायरता दिखाने का या रणभूमि से भागने का नहीं है। गीता में भगवान कहते है --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् - "जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥"
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"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
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"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व, जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव, निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥११:३३॥"
अर्थात् -- इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो। ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे सव्यसाचिन्! तुम केवल निमित्त ही बनो॥
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किसी भी परिस्थिति में, किसी भी क्लेश/कष्ट में भगवान हमारी रक्षा करेंगे। स्मरण रखो --
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
भावार्थ -- "वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को वंदन है, उन गोविंद को पुनः पुनः नमन है, वे हमारे क्लेश/कष्टों का नाश करें॥"
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह के समक्ष एक शुद्ध घी का दीपक जलायें। और इस मंत्र की कम से कम एक माला नित्य करें। घर में सुख और शांति बनी रहेगी। कलह-क्लेश और नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होगी। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२६ अगस्त २०२४
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