मैं जब गुरु पर ध्यान करता हूँ, उस समय मुझ में, गुरु में, और परमात्मा में कोई भेद नहीं होता। हम तीनों एक होते हैं। ऐसे ही जब मैं परमात्मा के किसी भी रूप पर ध्यान करता हूँ तब भी हमारे में कोई भेद नहीं होता।
देने योग्य एक ही ज्ञान है, वह है शिव-तत्व का ज्ञान; जिसके प्राप्त होने पर सब कुछ प्राप्त हो जाता है। वही ब्रह्मज्ञान है। ध्यान हम परमशिव का करें, या पुरुषोत्तम का, परिणाम एक ही होता है। शिव ही विष्णु हैं, और विष्णु ही शिव हैं।
साधक में आवश्यकता है केवल सत्यनिष्ठा और परमप्रेम (भक्ति) की। यदि ये हैं तो सब कुछ हैं।
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एक अंतिम बात और कहना चाहता हूँ कि सत्य-सनातन-धर्म की पुनःस्थापना का कार्य प्रकृति द्वारा आरंभ हो चुका है। सनातन की पुनः स्थापना भी होगी और वैश्वीकरण भी होगा।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अगस्त २०२४
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