Saturday, 7 September 2024

परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति ऊर्ध्वस्थ मूल में ही होती है ---

श्रीमद्भगवद्गीता के पुरुषोत्तम योग (अध्याय १५) में भगवान श्रीकृष्ण ने एक रहस्यों का रहस्य बताया है, जिसे समझना प्रत्येक साधक के लिए परम उपयोगी और आवश्यक है। परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति ऊर्ध्वस्थ मूल में ही होती है। भगवान कहते हैं कि हम उन्हें अपने ऊर्ध्वस्थ मूल में ढूंढें ---

"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥१५:१॥"
श्री भगवान् ने कहा -- (ज्ञानी पुरुष इस संसार वृक्ष को) ऊर्ध्वमूल और अध:शाखा वाला अश्वत्थ और अव्यय कहते हैं; जिसके पर्ण छन्द अर्थात् वेद हैं, ऐसे (संसार वृक्ष) को जो जानता है, वह वेदवित् है॥
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>>> मेरा आप सब पाठकों से अनुरोध है कि किसी श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ गीता-मर्मज्ञ सिद्ध योगी महात्मा के चरण कमलों में बैठकर उनसे उपदेश और सीख लें। मैं हरिःकृपा से बहुत विद्वतापूर्ण लेख तो लिख सकता हूँ जिसे पढ़कर आप वाह-वाह करने लगेंगे, लेकिन उससे किसी का कल्याण होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। <<<
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मुझे स्वयं को तो बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं है। लेकिन दूसरों के संशयों को दूर कर पाऊँगा या नहीं, इसमें मुझे संशय है। इसलिए आगे और कुछ भी इस विषय पर नहीं लिखूंगा।
कृपा शंकर
८ सितंबर २०२२

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