(१) सर्वव्यापी ज्योतिर्मय भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही वह कूटस्थ ब्रह्मज्योति हैं, जिनके आलोक से समस्त सृष्टि प्रकाशित है। सर्वत्र उनकी ज्योति का प्रकाश ही प्रकाश है, कहीं कोई अंधकार नहीं है। जहाँ भगवान स्वयं बिराजमान हैं, वहाँ किसी भी तरह के अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं रह सकता। हम हर समय उन कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म की चेतना "ब्राह्मी-स्थिति" में ही निरंतर रहें --
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति। स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥२:७२॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् -- हे पार्थ यह ब्राह्मी स्थिति है। इसे प्राप्त कर पुरुष मोहित नहीं होता। अन्तकाल में भी इस निष्ठा में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण (ब्रह्म के साथ एकत्व) को प्राप्त होता है॥
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(२) हमारी सारी समस्याएँ - भगवान का अनुग्रह है, जो हमारे विकास के लिए
अति आवश्यक है।
हर विपरीत परिस्थिति और हर समस्या -- भगवान द्वारा दिया गया एक दायित्व है जिस से हम बच नहीं सकते। यह हमारे विकास के लिए आवश्यक है। हमें हर परिस्थिति से ऊपर उठना ही पड़ेगा, दूसरा कोई विकल्प नहीं है। किसी अन्य को दोष देना व्यर्थ है। दुर्बलता स्वयं में ही होती है। बाहर की समस्त समस्याओं का समाधान स्वयं के भीतर ही है। जैसा हम सोचते हैं और जैसे लोगों के साथ रहते हैं, वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण हमारे चारों ओर हो जाता है। हमारे प्रारब्ध और संचित कर्मों के फलस्वरूप भी जो परिस्थितियाँ हमें मिलती हैं उन से भी ऊपर हमें उठना ही होगा। अन्य कोई विकल्प नहीं है। जो साहस छोड़ देते हैं वे अपने अज्ञान की सीमाओं में बंदी बन जाते हैं। सारी समस्याएँ -- भगवान का अनुग्रह हैं। यह हमारी मानसिक सोच पर निर्भर है कि हम उनसे निराश होते हैं या उत्साहित होते हैं। जब हम परिस्थितियों के सामने समर्पण कर देते हैं या उनसे हार मान जाते हैं, तब हमारे दुःखों और दुर्भाग्य का आरम्भ होता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित अर्थ सहित स्वाध्याय सब प्रकार की परिस्थितियों से ऊपर उठने में हमारी सहायता करता है। गीता कोई साम्प्रदायिक ग्रन्थ नहीं है, यह सार्वभौमिक है, और भारत का प्राण है। यह समस्त मानव जाति को दिया हुआ भगवान का सन्देश है।
जन्माष्टमी का पर्व सभी के लिए शुभ हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ सितंबर २०२३
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