अनन्य भाव से निश्चिंत होकर इधर-उधर देखे बिना आत्मरूप से उनका निरंतर निष्काम चिंतन करते हुए सीधे चलते रहो। हमारा योगक्षेम उनकी चिंता है।
अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है। जीवन और मृत्यु में भी हमारी वासना नहीं होनी चाहिए। केवल भगवान ही हमारे अवलम्बन हों।
गीता में उन्होने जो वचन दिया है, वह झूठा नहीं हो सकता ---
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् -- अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ॥
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भगवान क्या खाते है?
भगवान को आपके बड़े बड़े राजसी पक्वान्न पसंद नहीं हैं। पत्र, पुष्प, फल और जल आदि जो भी आप उन्हें प्रेम से अर्पित करेंगे, उन्हें वे खा लेंगे।
"पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥९:२६॥"
अर्थात् -- जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि भक्ति से अर्पण करता है, उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ॥
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अतः चिंता मत करो कि भगवान को क्या खिलाएँगे। कोई ५६ भोग बनाने की या किसी ५ सितारा होटल से खाना मंगाने चिंता न करें। हम जो कुछ भी खाते हैं वह वास्तव में भगवान ही खाते हैं, और वे ही पचाते हैं। हम जो कुछ भी खा रहे हैं, वह हम नहीं अपितु हमारे माध्यम से भगवान ही खा रहे हैं।
हर साँस पर उनका स्मरण हो। यदि हमारा यह स्वभाव बन जाये तो इसी जन्म में हमारी मुक्ति निश्चित है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ सितंबर २०२३
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