Saturday, 7 September 2024

गणेश-चतुर्थी मंगलमय हो ---

मैंने आज तक गणेश जी बारे में जो कुछ भी लिखा है और जो कुछ भी कहा है वह उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति के समक्ष सब महत्वहीन है। उनकी कृपा से मैं आज वह लिखने जा रहा हूँ जो आज तक मैंने कभी न तो लिखा है, और न कहा है। सारा परिदृश्य ही बदल गया है। गणेश जी के बारे में मेरे स्वयं के लिखे पुराने लेख सब महत्वहीन हो गये हैं।

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ब्रह्ममुहूर्त में प्रातःकाल उठते ही मैं सर्वप्रथम सहस्त्रारचक्र में गुरुपादुका को नमन कर वहाँ दिखाई दे रही ज्योति के रूप में गुरु महाराज के पाद-पद्मों (गुरु-चरणों) का ध्यान करता हूँ। वहाँ बिखरे हुए प्रकाश-कण उनके चरणों की रज है। इस ध्यान से मुझे गुरु-चरणों में आश्रय मिल जाता है।
मैं जो लिखने जा रहा हूँ, उसे लिखने की मुझे एक आंतरिक अनुमति है। अन्यथा निषेधात्मक कारणों से इसे नहीं लिखा जाता।
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कई बार सहस्त्रार से ऊपर का भाग खुल जाता है और चेतना इस देह से बाहर निकल कर अनंताकाश को भेदती हुई एक परम ज्योतिर्मय जगत में चली जाती है, जिसे मैं परमशिव की अनुभूति कहता हूँ।
आज मूलाधारचक्र में गणपती के एक मंत्र का जप कर रहा था, तो एक चमत्कार घटित हो गया। सब चक्रों के माध्यम से सारी चेतना ऊर्ध्वमुखी होकर सहस्त्रारचक्र में आ गयी। मेरी चेतना मे एक अति आनंददायक सर्वव्यापी श्वेत ज्योति व्याप्त हो गयी, जो सूर्य से भी अधिक चमकीली थी लेकिन उसमें शीतलता थी, कोई उष्णता नहीं। ओंकार की ध्वनि का श्रवण भी स्वतः ही होने लगा। उसी के ध्यान में कितना समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला। जो कुछ भी समझ में आना चाहिए था वह सब समझ में आ गया। कई बाते ऐसी होती हैं कि उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं होते। यह भी अनुभूतिजन्य ऐसी ही बात है जो शब्दों से परे है।
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लौकिक रूप से घर पर जो गणेश जी की जो पूजा होती है वह परंपरागत रूप से सम्पन्न कर दी। मेरे आसपास किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। सबको आदत पड़ गई है मुझे एकांत में रहते देखने की। लेकिन इस तरह के अनुभव बहुत कुछ सिखा जाते हैं। सभी में परमात्मा को नमन॥ इस समय किसी भी तरह की चर्चा करने में असमर्थ हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ सितंबर २०२४

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