Saturday 7 September 2024

किसी भी तरह की कामना -- अविद्या को जन्म देती है, और हमें भगवान से दूर करती है ---

किसी भी तरह की कामना -- अविद्या को जन्म देती है, और हमें भगवान से दूर करती है। समष्टि का कल्याण ही हमारा कल्याण है, जिसके लिए 'तप' करना होगा। आध्यात्म के पथिक को सब तरह की आकांक्षाओं से मुक्त होना होगा। सिर्फ एक अभीप्सा हो परमात्मा को पाने की। लेकिन समष्टि के कल्याण के लिए तो कर्म करना ही होगा। गीता में भगवान कहते हैं --
"न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥३:२२॥"
अर्थात् -- हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्तव्यकर्म में ही लगा रहता हूँ।
There is nothing in this universe, O Arjuna, that I am compelled to do, nor anything for Me to attain; yet I am persistently active.
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जो सब कामनाओं से मुक्त होकर समभाव में स्थित है, वह ज्ञानी कहलाता है। समभाव में स्थिति -- ज्ञान है। ज्ञानी कुछ पाने के लिए कर्म नहीं करते। उनका हर कर्म समष्टि के कल्याण के लिए ही होता है, उसे ही तप कहते हैं।
तप क्या है? इसे एक सद्गुरु ही अपने शिष्य को समझा सकता है। हमारी आध्यात्मिक साधना भी एक तप है। यह तो हमें करनी ही होगी।
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सभी को मंगलमय शुभ शुभेच्छा और नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

८ सितंबर २०२३। समष्टि का कल्याण ही हमारा कल्याण है, जिसके लिए 'तप' करना होगा। आध्यात्म के पथिक को सब तरह की आकांक्षाओं से मुक्त होना होगा। सिर्फ एक अभीप्सा हो परमात्मा को पाने की। लेकिन समष्टि के कल्याण के लिए तो कर्म करना ही होगा। गीता में भगवान कहते हैं --

"न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥३:२२॥"
अर्थात् -- हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्तव्यकर्म में ही लगा रहता हूँ।
There is nothing in this universe, O Arjuna, that I am compelled to do, nor anything for Me to attain; yet I am persistently active.
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जो सब कामनाओं से मुक्त होकर समभाव में स्थित है, वह ज्ञानी कहलाता है। समभाव में स्थिति -- ज्ञान है। ज्ञानी कुछ पाने के लिए कर्म नहीं करते। उनका हर कर्म समष्टि के कल्याण के लिए ही होता है, उसे ही तप कहते हैं।
तप क्या है? इसे एक सद्गुरु ही अपने शिष्य को समझा सकता है। हमारी आध्यात्मिक साधना भी एक तप है। यह तो हमें करनी ही होगी।
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सभी को मंगलमय शुभ शुभेच्छा और नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
८ सितंबर २०२३

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