हमारे एकमात्र शाश्वत साथी सिर्फ परमात्मा हैं, अन्य कोई नहीं है ---
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यदि आप कोई नित्य नियमित महफिल लगायें, जिसमें आने वालों को मुफ्त की शराब, और जूआ खेलने की सुविधा भी दें, तो आपके पास मित्रों की कोई कमी नहीं रहेगी। सब तरह के मित्र आपको मिल जायेंगे -- शेर-ओ-शायरी करने वाले, नाचने-गाने वाले, हर तरह के विचारों की महिलाएँ और पुरुष, -- आकर्षित होकर आपसे जुड़ जायेंगे।
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उसी तरह आप किन्हीं ऐसे देवी-देवता की आराधना करवायें जिनसे खूब धन-दौलत मिलने की उम्मीद हो तो भी खूब भीड़ जुट जाएगी। धन-दौलत तो अपनी श्रद्धा से ही मिलती है लेकिन श्रेय उन आराध्य को ही दिया जाएगा।
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निष्काम भाव से, सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति के लिए ही यदि आप सत्संग चाहते हैं तो एकमात्र सत्संगी सिर्फ परमात्मा ही मिलेंगे। उन्हीं का साथ शाश्वत है। वे इस जन्म से पहिले भी हमारे साथ थे, और मृत्यु के बाद भी रहेंगे। अतः उन्हीं से मित्रता करो और उन्हीं के साथ रहो। भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥६:३०॥"
अर्थात् -- वे जो मुझे सर्वत्र और प्रत्येक वस्तु में देखते हैं, मैं उनके लिए कभी अदृश्य नहीं होता और वे मेरे लिए अदृश्य नहीं होते।
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नारद भक्ति सूत्र का ६१ वां सूत्र तो कहता है --
"लोकहानौ चिन्ता न कार्या निवेदितात्म लोकवेदत्वात्॥"
अर्थात् -- "जब हम संसार में कठिनाइयों का सामना करें, तब हमें शोक या चिन्ता नहीं करनी चाहिए। इन घटनाओं को भगवान की कृपा के रूप में देखना चाहिए।"
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यह सम्पूर्ण सृष्टि आप स्वयं हैं, क्योंकि आप सृष्टिकर्ता के साथ हैं। अपने शिवरूप में स्थित रहने की साधना करो। मस्त रहोगे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ नवंबर २०२२
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