Wednesday, 9 November 2022

मैं नहीं, मेरा नहीं, सब कुछ वे ही हैं ---

 मैं नहीं, मेरा नहीं, सब कुछ वे ही हैं ---

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स्वयं को यह भौतिक देह मानना, व इसकी सुख-सुविधा और ख्याति की चिंता और प्रयास में लगे रहना ही अहंकार है। अब पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, स्वर्ग-नर्क, अच्छा-बुरा आदि में कोई रुचि नहीं रही है। एकमात्र आकर्षण मेरे समक्ष सदा बिराजमान कूटस्थ ब्रह्म का ही है। कूटस्थ में भगवान की उपस्थिती का आभास हर समय रहता है। उन्हीं में पूर्ण समर्पण हो, यही एकमात्र अभीप्सा है।
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पिछले जन्मों के कर्मफलों को भुगतने के लिए ही हम सब इस संसार में जन्म लेते हैं, और नए कर्मों की सृष्टि भी अनायास ही हो जाती है। मुझे इस बात का आभास है कि इस जीवन में मेरा यहाँ कितना समय और अवशिष्ट है, लेकिन उसकी चर्चा नहीं करूंगा।
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परमात्मा के चिंतन और ध्यान में ही सारा समय व्यतीत हो, इस की प्रेरणा मुझे सूक्ष्म जगत से मेरे पूर्व जन्मों के गुरु दे रहे हैं। इसलिए भगवान को ही सब कुछ समर्पित कर दिया है। न तो मैं हूँ, और न कुछ मेरा है। सब कुछ परमात्मा हैं, जो इस समय भी मेरे कूटस्थ-चैतन्य में मेरे समक्ष हैं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ नवंबर २०२२

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