Wednesday, 9 November 2022

ध्यान साधना का एकमात्र लक्ष्य -- कुंडलिनी महाशक्ति और परमशिव का योग है

 ध्यान साधना का एकमात्र लक्ष्य -- कुंडलिनी महाशक्ति और परमशिव का योग है

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परमात्मा ने स्वयं को पुरुष और प्रकृति के रूप में व्यक्त किया है। जहाँ तक मैं अपने अनुभव से समझ पाया हूँ, पुरुष --- आकाश-तत्व; और प्रकृति --- प्राण-तत्व है। हम जब ध्यान की गहराई में जाते हैं, तब आकाश-तत्व और प्राण-तत्व की अनुभूति होती है। हम आकाश-तत्व का ध्यान करते हैं, लेकिन कर्ता कौन है? किसने हमें धारण कर रखा है? प्राण-तत्व ने हमें धारण कर रखा है। कर्ता कौन है? यह अनुसंधान का विषय है। कर्ता तो परम-पुरुष ही हैं। हमारा समर्पण उन्हीं के प्रति है। लेकिन परम-पुरुष का बोध हमें प्राण-तत्व के रूप में भगवती महाकुंडलिनी शक्ति ही कराती है। परम-पुरुष परम कल्याणकारी हैं, इसलिए उन्हें परमशिव भी कहते हैं, वे ही परमात्मा हैं।
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साकार रूप में भगवान श्रीराधाकृष्ण को लीजिये। यह समस्त अनंत विस्तार, यह समस्त सृष्टि, और यह समस्त अस्तित्व श्रीकृष्ण हैं, लेकिन जिसने इस सृष्टि को धारण कर रखा है, जो इसकी प्राण हैं, वे श्रीराधा हैं। साकार रूप में जो श्रीकृष्ण हैं, निराकार रूप में वे ही परमब्रह्म यानि परमशिव हैं। साकार रूप में जो श्रीराधा हैं, निराकार रूप में वे ही प्राणों का घनीभूत रूप कुंडलिनी महाशक्ति हैं। जगन्माता के सारे रूप उन्हीं के हैं।
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इससे अधिक लिखना इस समय मेरे लिए संभव नहीं है। भविष्य में भी नहीं लिख सकूँगा। आप अपने स्वयं के अनुभव लीजिये। वे ही आपके काम आएंगे। मेरा अनुभव दूसरों के किसी काम का नहीं है। भगवती की प्रेरणा से यह सब लिखा गया, अन्यथा मेरी कोई औकात नहीं है।
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मैं शब्दों से भी परे जाना चाहता हूँ। जो समस्त ब्रह्मांड में व्यापात चेतना है, जो यह ब्रह्मांड बन गई है, और जिसने इसे धारण कर रखा है, उस चेतना के साथ एक होने की प्यास और घनीभूत तड़प यानि अभीप्सा है। कोई आकांक्षा नहीं है।
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आप सब को धन्यवाद, जिन्होंने मेरे जैसे नीरस व्यक्ति को इतने लंबे समय तक सहन किया। आप सब को नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ नवंबर २०२२

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