हम कौन हैं? ---
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हम यह भौतिक देह नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व और परमात्मा के साथ एक हैं, वैसे ही जैसे महासागर में जल की एक बूँद। जल की यह बूँद जब तक महासागर से जुड़ी हुई है, अपने आप में स्वयं ही महासागर है। पर महासागर से दूर होकर वह कुछ भी नहीं है। वैसे ही परमात्मा से दूर होकर हम अस्तित्वहीन हैं।
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परमात्मा ने समष्टि में अपना प्रकाश फैलाने और अपने ही अन्धकार को दूर करने का दायित्व हमें दिया है। उनकी लीला में हमारी पृथकता का बोध -- माया के आवरण के कारण एक भ्रममात्र है। हमारा स्वभाव परम प्रेम है। हम स्वयं परमप्रेम हैं।
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परमात्मा के संकल्प से यह सृष्टि बनी है। हम उनके अमृतपुत्र और उनके साथ एक हैं। जो कुछ भी परमात्मा का है वह हमारा है। हम कोई भिखारी नहीं हैं। परमात्मा को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। परमात्मा का संकल्प ही हमारा संकल्प है। प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है।
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मैं परमात्मा का सर्वव्यापी प्रकाश और प्रणव की सर्वव्यापी सूक्ष्मतम ध्वनि हूँ। मैं और मेरे प्रभु एक हैं। कहीं कोई भेद नहीं है। जो मैं हूँ, वह ही आप हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ नवंबर २०२२
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