परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग "सत्य-सनातन-धर्म" है जिसे हिन्दू धर्म कहते हैं ---
.
सत्य-सनातन-धर्म की शरण अंततोगत्वा समस्त मानव जाति को लेनी ही पड़ेगी। यह कार्य कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि स्वयं का स्वभाव ही कर देगा। मनुष्य जीवन का एकमात्र परम उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है। जब तक ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं होती तब तक अंतर्रात्मा अतृप्त ही रहती है। मनुष्य बार बार तब तक जन्म लेता रहेगा जब तक वह अपने परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त नहीं कर लेगा।
.
जन्म लेते ही मनुष्य मौज-मस्ती और इंद्रीय सुखों के पीछे भागता है; लेकिन उसे उन से कोई तृप्ति और संतोष नहीं मिलता। वह असंतुष्ट और अतृप्त ही मर जाता है, और उसकी आकांक्षाएँ/कामनाएँ उसे पुनर्जन्म लेने को बाध्य कर देती हैं। बार-बार जन्म लेते लेते और दुःख पाते पाते वह स्वयं से ही अपने दुःखों का कारण पूछने लगता है। फिर वह कुछ पुण्य कार्य करता है। अनेक जन्मों के पुण्य जब फलीभूत होते हैं तब भक्ति जागृत होती है और उसमें परमात्मा को पाने की एक तड़प जन्म लेती है। यह परमात्मा को पाने की अभीप्सा और परमात्मा के मार्ग पर चलना ही सनातन धर्म है। प्रत्येक जीवात्मा को इस मार्ग पर आना ही पड़ेगा, क्योंकि अंततोगत्वा उसे परमात्मा में बापस जाना ही है।
.
आध्यात्मिक सफलता के लिए सब तरह के द्वंद्वों से ऊपर उठो। जीवन बहुत अल्प है। सारा मार्गदर्शन गीता और उपनिषदों में है। आप सब में अंतस्थ परमात्मा को नमन।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ नवंबर २०२२
No comments:
Post a Comment