Wednesday 10 August 2016

हम किसी भी तरह की साधना कर के भगवान पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं .....

हम किसी भी तरह की साधना कर के
भगवान पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं .....
>
हम चाहे जितना भी जप-तप करते हों इसमें अभिमान की क्या बात है?
कुछ लोग बड़े गर्व से कहते हैं की फलाँ फलाँ मन्त्र के एक करोड़ जप कर लिए, इतनी इतनी मालाएँ फलाँ मन्त्र की नित्य करते हैं, इतने घंटे ध्यान करते हैं आदि आदि| पर इसमें अभिमान की क्या बात है? आपकी क्रियाओं का उतना महत्व नहीं है जितना आपके प्रेम और समर्पण का है|
.
जो कुछ भी उपलब्धि होती है वह गुरु और परमात्मा की कृपा से होती है, ना की स्वयं के अहंकारमय प्रयास से| भगवान को और उनकी कृपा को जप-तप से कोई खरीद नहीं सकता|
.
अहैतुकी प्रेम और पूर्ण समर्पण का निरंतर प्रयास ही साधना है| जिनके ह्रदय में अभीप्सा और तड़प होती है उन्हें भगवान स्वयं ही मार्ग दिखाते हैं| अपनी सब कमियों को भी प्रभु को समर्पित कर दो| कुछ भी बचाकर मत रखो| भगवान स्वयं अपने भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं|
.
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment