चीन के बारे में .....
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ये मेरे निजी अनुभव से व्यक्त किए हुए विचार हैं|
रूस और युक्रेन में व यूरोप के अन्य पूर्व साम्यवादी देशों में जिस गति से सनातन हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार हो रहा है वह आश्चर्यजनक है| रूस में तो एक चमत्कार सा ही हो रहा है| मैं रूस, लाटविया और युक्रेन का भ्रमण कर चुका हूँ| रूस में तो खूब रहा हूँ| पूर्व युगोस्लाविया के भी एक-दो देशों में जा चुका हूँ| रोमानिया भी गया हूँ| उपरोक्त देशों में सनातन हिन्दू धर्म का विभिन्न हिन्दू गुरुओं द्वारा बहुत अच्छा प्रसार हो रहा है|
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चीन का भी भ्रमण मैंने तीन-चार बार किया है, और कुछ माह वहाँ रहा भी हूँ| वहाँ के लोगों में भी भारत के बारे में व धर्म और आध्यात्म के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा है, पर वहाँ के सरकारी आतंक के कारण सरकार की हाँ में हाँ मिलाने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है| वहाँ की साम्यवादी पार्टी आतंक के जोर पर राज्य कर रही है अन्यथा वहाँ कोई साम्यवाद नहीं है| पूर्व साम्यवादी व्यवस्था के आतंक के कारण लोगों का बौद्ध मत के बारे में तो ज्ञान लुप्तप्राय हो चुका है| ईसाई धर्म प्रचारकों ने वहाँ अपना पूरा जोर लगा रखा है, पर चीन की सरकार ने ईसाई धर्म का चीनीकरण कर दिया है|
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यदि चीन में वर्त्तमान शासन व्यवस्था नहीं रहे और संबंधों में सुधार होकर दोनों देशों में आवागमन सुलभ हो जाए तो भारत के हिन्दू धर्म प्रचारकों का वहाँ जाना सुलभ हो जाएगा| जब हिन्दू धर्म प्रचारक वहाँ पहुंचेंगे तो सनातन धर्म का प्रचार प्रसार वहाँ बहुत तीब्र गति से होगा जो दोनों देशों के लिए लाभदायक होगा|
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मैं पाठकों को याद दिलाना चाहता हूँ कि सन 0067 ई. में नालंदा विश्वविद्यालय से कश्यपमातंग और धर्मारण्य नाम के दो धर्मप्रचारक चीन में गए थे जिन्होंने पूरे चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया| ऐसे ही ईसा की छठी शताब्दी में बोधिधर्म नाम का एक धर्म प्रचारक भारत से चीन के हुनान प्रान्त के प्रसिद्ध शाओलिन मंदिर में गया था और वहाँ लम्बे समय तक रह कर जापान गया| उसने जापान में जिस बौद्ध मत का प्रचार किया वह लगभग एक हज़ार वर्ष तक जापान का राजधर्म रहा|
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बारहवीं शताब्दी में चीन का मंगोल शासक कुबलईखान बौद्ध मतावलंबी था| वह विश्व का सबसे शक्तिशाली सम्राट था जिसका शासन उत्तर में बाईकाल झील से दक्षिण में वियतनाम तक और पूर्व में कोरिया से पश्चिम में कश्यप सागर तक था| चीनी लिपि का आविष्कार भी उसी के शासन में हुआ था| मार्कोपोलो भी उसी के समय चीन गया था| उसी ने तिब्बत में प्रथम दलाई लामा की नियुक्ति की थी| भारत से धर्म प्रचारकों का जब से वहाँ जाना कम हो गया तभी से भारत का प्रभाव भी कम होता चला गया|
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भारत के धर्म प्रचारकों पर मुझे पूरा भरोसा है| श्री श्री रविशंकर जैसे धर्मप्रचारकों और बाबा रामदेव जैसे योगाचार्यों को अगर चीन में बिना रोकटोक जाने का अवसर मिलना आरम्भ हो जाए तो मुझे पूरा भरोसा है कि चीन में सनातन धर्म को फ़ैलने में देरी नहीं लगेगी (ये मेरे निजी विचार हैं)| धन्यवाद !
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ये मेरे निजी अनुभव से व्यक्त किए हुए विचार हैं|
रूस और युक्रेन में व यूरोप के अन्य पूर्व साम्यवादी देशों में जिस गति से सनातन हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार हो रहा है वह आश्चर्यजनक है| रूस में तो एक चमत्कार सा ही हो रहा है| मैं रूस, लाटविया और युक्रेन का भ्रमण कर चुका हूँ| रूस में तो खूब रहा हूँ| पूर्व युगोस्लाविया के भी एक-दो देशों में जा चुका हूँ| रोमानिया भी गया हूँ| उपरोक्त देशों में सनातन हिन्दू धर्म का विभिन्न हिन्दू गुरुओं द्वारा बहुत अच्छा प्रसार हो रहा है|
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चीन का भी भ्रमण मैंने तीन-चार बार किया है, और कुछ माह वहाँ रहा भी हूँ| वहाँ के लोगों में भी भारत के बारे में व धर्म और आध्यात्म के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा है, पर वहाँ के सरकारी आतंक के कारण सरकार की हाँ में हाँ मिलाने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है| वहाँ की साम्यवादी पार्टी आतंक के जोर पर राज्य कर रही है अन्यथा वहाँ कोई साम्यवाद नहीं है| पूर्व साम्यवादी व्यवस्था के आतंक के कारण लोगों का बौद्ध मत के बारे में तो ज्ञान लुप्तप्राय हो चुका है| ईसाई धर्म प्रचारकों ने वहाँ अपना पूरा जोर लगा रखा है, पर चीन की सरकार ने ईसाई धर्म का चीनीकरण कर दिया है|
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यदि चीन में वर्त्तमान शासन व्यवस्था नहीं रहे और संबंधों में सुधार होकर दोनों देशों में आवागमन सुलभ हो जाए तो भारत के हिन्दू धर्म प्रचारकों का वहाँ जाना सुलभ हो जाएगा| जब हिन्दू धर्म प्रचारक वहाँ पहुंचेंगे तो सनातन धर्म का प्रचार प्रसार वहाँ बहुत तीब्र गति से होगा जो दोनों देशों के लिए लाभदायक होगा|
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मैं पाठकों को याद दिलाना चाहता हूँ कि सन 0067 ई. में नालंदा विश्वविद्यालय से कश्यपमातंग और धर्मारण्य नाम के दो धर्मप्रचारक चीन में गए थे जिन्होंने पूरे चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया| ऐसे ही ईसा की छठी शताब्दी में बोधिधर्म नाम का एक धर्म प्रचारक भारत से चीन के हुनान प्रान्त के प्रसिद्ध शाओलिन मंदिर में गया था और वहाँ लम्बे समय तक रह कर जापान गया| उसने जापान में जिस बौद्ध मत का प्रचार किया वह लगभग एक हज़ार वर्ष तक जापान का राजधर्म रहा|
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बारहवीं शताब्दी में चीन का मंगोल शासक कुबलईखान बौद्ध मतावलंबी था| वह विश्व का सबसे शक्तिशाली सम्राट था जिसका शासन उत्तर में बाईकाल झील से दक्षिण में वियतनाम तक और पूर्व में कोरिया से पश्चिम में कश्यप सागर तक था| चीनी लिपि का आविष्कार भी उसी के शासन में हुआ था| मार्कोपोलो भी उसी के समय चीन गया था| उसी ने तिब्बत में प्रथम दलाई लामा की नियुक्ति की थी| भारत से धर्म प्रचारकों का जब से वहाँ जाना कम हो गया तभी से भारत का प्रभाव भी कम होता चला गया|
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भारत के धर्म प्रचारकों पर मुझे पूरा भरोसा है| श्री श्री रविशंकर जैसे धर्मप्रचारकों और बाबा रामदेव जैसे योगाचार्यों को अगर चीन में बिना रोकटोक जाने का अवसर मिलना आरम्भ हो जाए तो मुझे पूरा भरोसा है कि चीन में सनातन धर्म को फ़ैलने में देरी नहीं लगेगी (ये मेरे निजी विचार हैं)| धन्यवाद !
ॐ शिव |
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