Wednesday 10 August 2016

भगवान शिव के पाँच मुख ....

भगवन शिव के पाँच मुख .....
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शिवजी के प्रतीकात्मक रूप से पाँच मुख हैं| ये पाँच तत्वों के प्रतीक हैं| इनके नाम भी सद्योजात (जल), वामदेव (वायु), अघोर (आकाश), तत्पुरुष (अग्नि), ईशान (पृथ्वी) हैं। शैवागम शास्त्रों में इनकी विस्तृत व्याख्या है| शैवागम शास्त्रों के आचार्य हैं --- दुर्वासा ऋषि|
व्यवहारिक रूप से योग साधना करने वाले सभी योगियों को पंचमुखी महादेव के दर्शन गहन ध्यान में एक श्वेत रंग के पंचमुखी नक्षत्र के रूप में होते हैं जो एक नीले आवरण से घिरा होता है| यह नीला आवरण भी एक सुनहरे प्रकाश पुंज से घिरा होता है| ध्यान साधना में योगी पहले उस सुनहरे आवरण को, फिर नीले प्रकाश को, फिर उस श्वेत नक्षत्र का भेदन करता है| तब उसकी स्थिति कूटस्थ चैतन्य में हो जाती है| यह योगमार्ग की सबसे बड़ी साधना है| उससे से परे स्थित होकर जीव स्वयं शिव बन जाता है| उसका कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता|
यह अनंत विराट श्वेत प्रकाश पुंज ही क्षीर सागर है जहां भगवान नारायण निवास करते हैं|
यह है भगवन शिव के पाँच मुखों का रहस्य जिसे भगवान शिव की कृपा से ही समझा जा सकता है|
इन तीनो प्रकाश पुंजों को आप शिवजी के तीन नेत्र कह सकते हैं| हो सकता है मैं गलत हूँ| मनीषियों के विचार आमंत्रित हैं|
मेरे विचार से "ॐ तत् सत्" भी तीनों रंगों का प्रतीक है| सुनहरा प्रकाश ॐ है| यह वह स्पंदन है जिससे समस्त सृष्टि बनी है| नीला रंग 'तत्" यानि कृष्ण-चैतन्य या परम-चैतन्य है| 'सत्' श्वेत रंग स्वयं परमात्मा का प्रतीक है| ईसाई मत में 'Father', 'Son' and the 'Holy Ghost' इन तीन शब्दों का प्रयोग किया गया गया है| यह 'ॐ तत्सत्' का ही व्यवहारिक अनुवाद है| Holy Ghost का अर्थ ॐ है, Son का अर्थ है कृष्ण-चैतन्य, और Father का अर्थ है स्वयं परमात्मा|
शिवमस्तु | ॐ नमः शिवाय |

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