Wednesday, 10 August 2016

आत्म बल यानि परम साहस .....

आत्म बल यानि परम साहस .....
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यह बात सन 1776 ई.की है| जनरल जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में अमेरिका की सेना ब्रिटेन के विरुद्ध क्रांतिकारी युद्ध लड़ रही थी| बर्फीला मौसम था, अति भयानक ठण्ड थी| अमेरिका के अधिकाँश सैनिक भूखे-प्यासे थे, उनके पैर के जूते और शरीर के कपड़े फट चुके थे| अधिकाँश सिपाही नंगे पाँव लड़ रहे थे| सिर्फ देशभक्ति की भावना से वे सब तरह की विपरीतताओं के होते हुए भी युद्ध कर रहे थे|
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जनरल जॉर्ज वाशिंगटन अपने सिपाहियों का निरंतर उत्साहवर्धन करते हुए प्रेरणा दे रहे कि मातृभूमि को स्वतंत्र कराने हेतु इस युद्ध में मैदान छोड़कर भागें नहीं, और ब्रिटेन की शक्तिशाली सेना के विरुद्ध लड़ते रहें| अमेरिकी सिपाहियों को मरते दम तक लड़ने की प्रेरणा देशभक्ति की भावना जगाकर इसी विश्वास से वे दे रहे थे कि उनका नया राष्ट्र एक स्वतंत्रता और समानता का राष्ट्र होगा|
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23 दिसंबर 1776 को थॉमस पेन नाम के एक लेखक ने “The American Crisis” शीर्षक से अति प्रेरणास्पद पर्चे छपवा कर अमेरिकी सेना में बाँटने आरंभ किये, जिनका प्रभाव यह पड़ा कि दो दिन बाद ही 25 दिसंबर 1776 की रात को जनरल जॉर्ज वाशिंगटन ने अपनी सेना के साथ बर्फ से जमी हुई डेलवर नदी को पार कर ट्रेंटन के युद्ध में ब्रिटेन की सेना को पराजित किया और एक नए स्वतंत्र राष्ट्र ... "संयुक्त राज्य अमेरिका" को जन्म दिया|
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एक आध्यात्मिक योद्धा को भी ऐसा ही भयंकर युद्ध अपने भीतर लड़ना पड़ता है जिसकी प्रेरणा सद्गुरु देते हैं| ऐसा ही भयानक युद्ध हमारे भीतर चल रहा है और जिस पर विजय का मार्ग भगवान श्रीकृष्ण भगवद्गीता में निरंतर दिखा रहे हैं| यह युद्ध लड़ना हमारा हमारा परम कर्त्तव्य है| जीवन एक स्वतन्त्रता संग्राम है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को ह्रदय में रखते हुए हमें निरंतर युद्ध करते रहना है, परिणाम चाहे कुछ भी हो|
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स्वयं के अंतर में सुप्त परमात्मा की शक्ति को जागृत कर साहस कभी ना खोएं| हम अकेले नहीं हैं, परमात्मा सदा हमारे साथ है|
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हे प्रभु, तुम्हारी सहायता से हम हमारे समस्त अवांछित को नष्ट कर के चित्त को शुद्ध करेंगे, वांछित सद्गुणों का विकास करेंगे, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सभी सीमितताओं का अतिक्रमण करेंगे| यह हमारी विजय होगी| सबका कल्याण हो|
ॐ ॐ ॐ ||

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