दक्षिणामूर्ति भगवान शिव .....
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भगवान शिव का वह रूप जिसमें उनका मुंह दक्षिण की ओर है, "दक्षिणामूर्ति" कहा जाता है| इसका अर्थ जो मैं अपनी अति सीमित और अत्यल्प बुद्धि व ध्यान साधना के नगण्य अनुभवों से समझा हूँ, उसे अपने आराध्य देव भगवान परमशिव की कृपा और प्रेरणा से कम से कम शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ|
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हमारी इस देह में भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, शिखास्थल पश्चिम है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, और उस से विपरीत दिशा दक्षिण है| मुझे भगवान शिव की अनुभूति गहन ध्यान में सहस्त्रार में होती है, जहाँ उनके चरण कमल हैं और सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता उनकी देह है| उनकी कृपा मुझ अकिंचन पर निरंतर बरस रही है| इस देह में मैं उनकी दक्षिण दिशा में हूँ, मेरा मुंह उनकी ओर व उनका मुंह मेरी ओर है, अतः मेरे लिए वे दक्षिणामूर्ति भगवान शिव हैं| माया का आवरण हटते ही मैं उनके साथ एक हूँ|
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भगवान शिव का वह रूप जिसमें उनका मुंह दक्षिण की ओर है, "दक्षिणामूर्ति" कहा जाता है| इसका अर्थ जो मैं अपनी अति सीमित और अत्यल्प बुद्धि व ध्यान साधना के नगण्य अनुभवों से समझा हूँ, उसे अपने आराध्य देव भगवान परमशिव की कृपा और प्रेरणा से कम से कम शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ|
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हमारी इस देह में भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, शिखास्थल पश्चिम है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, और उस से विपरीत दिशा दक्षिण है| मुझे भगवान शिव की अनुभूति गहन ध्यान में सहस्त्रार में होती है, जहाँ उनके चरण कमल हैं और सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता उनकी देह है| उनकी कृपा मुझ अकिंचन पर निरंतर बरस रही है| इस देह में मैं उनकी दक्षिण दिशा में हूँ, मेरा मुंह उनकी ओर व उनका मुंह मेरी ओर है, अतः मेरे लिए वे दक्षिणामूर्ति भगवान शिव हैं| माया का आवरण हटते ही मैं उनके साथ एक हूँ|
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गुरुओं के गुरु वे
भगवान परमशिव, गुरु रूप में मेरे सर्वस्व हैं| उनकी कृपा मुझ अकिंचन पर
निरंतर बरसती रहे, वे मेरे अज्ञान को दूर कर मुझे विक्षेप व आवरण के पाशों
से मुक्त करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ मई २०१८
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ मई २०१८
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