Thursday 3 May 2018

क्या परमात्मा को उपलब्ध होने के लिए विरक्त होना आवश्यक है ? .....

क्या परमात्मा को उपलब्ध होने के लिए विरक्त होना आवश्यक है ?
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एक समय था जब यह प्रश्न मेरे मन को बहुत अधिक उद्वेलित करता था| गत वर्ष इसी विषय पर मैंने एक बहुत बड़ा लेख लिखा था जिस पर खूब प्रतिक्रियाएँ भी आई थीं| अब यह विषय महत्वहीन हो गया है|
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सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा कि >>>>> मनुष्य की संकल्प शक्ति से अधिक शक्तिशाली तो उसके चारों ओर के वातावरण का प्रभाव होता है| व्यक्ति को आजीविका के लिए अनेक प्रकार के व्यक्तियों से मिलना पड़ता है, देश-विदेश में पता नहीं कहाँ कहाँ भटकना पड़ता है, इसके अतिरिक्त उसके घर-परिवार के सदस्यों के भी नकारात्मक विचारों का प्रभाव उस पर पड़ता है| समाज का वातावरण आजकल बहुत अधिक विषाक्त है| ऐसे वातावरण का प्रभाव व्यक्ति को परमात्मा से दूर ले जाता है|
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अतः व्यक्ति को प्रयासपूर्वक कुसंग का त्याग और सत्संग करना चाहिए| किसी व्यक्ति को जब परमात्मा की एक झलक भी मिले तभी से निःसंग विरक्त होकर एकांत में भगवान की साधना अवश्य करनी चाहिए| घर, परिवार और समाज में रहकर यह असम्भव है| यह मैं अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ| किसी को अपने घर-परिवार में यदि सकारात्मक और सहायक वातावरण मिले तो दूसरी बात है|
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कोई दो लाख में से एक व्यक्ति के ह्रदय में परमात्मा को पाने की अभीप्सा होती है| यह अनेकानेक जन्मों के संचित कर्मों का फल होता है| अच्छे संतों से मिलना भी कई जन्मों के अच्छे कर्मों का फल होता है| आध्यात्म में भी सफलता मेरे विचार से प्रारब्ध से ही होती है|
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अतः इस बारे में सोचना ही बंद कर देना चाहिए| जितना साधन-भजन हो सकता है उतना कीजिये और बाकी परमात्मा पर छोड़ दीजिये|
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
४ मई, २०१७.

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