मेरा स्वधर्म, उस पर दृढ़ता का संकल्प, स्वधर्म के लक्ष्य को पाने की
अभीप्सा और उस अभीप्सा की अग्नि को निरंतर अधिकाधिक प्रज्ज्वलित करने की
साधना .....
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बहुत अधिक अटक गया था, भटका तो नहीं, पर अभीप्सा की अग्नि मंद पड़ गयी थी| परमात्मा उसे बापस प्रज्ज्वलित कर रहे हैं| अभीप्सा की अग्नि मंद पड़ने के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं| अब परमात्मा ने सोते से जगा दिया है, और उसका उपचार कर रहे हैं| अब और नहीं अटक सकता|
"सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा"
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हर मनुष्य का अपना अपना अलग अलग स्वधर्म होता है क्योंकि स्वधर्म वैयक्तिक होता है, सामूहिक नहीं| हम सर्वप्रथम तो यह ज्ञात करें कि हमारा स्वधर्म क्या है, फिर उस पर पूर्ण संकल्प के साथ दृढ़ता से डटे रहें, कोई समझौता नहीं| कथनी और करनी में कहीं अंतर न हो| फिर स्वधर्म का जो लक्ष्य है, उसे प्राप्त करने की प्रबल प्रचंड अभीप्सा हृदय में सदा प्रज्ज्वलित रहे| उस अभीप्सा को नित्य निरंतर प्रज्ज्वलित करते रहें| कहीं उसकी लौ मंद न पड़ जाए| यह अभीप्सा ही हमें अपने लक्ष्य तक ले जायेगी| यह अभीप्सा एक ऐसी प्यास है जो लक्ष्य को पाए बिना तृप्त नहीं होती| पर प्रतिकूल वातावरण के प्रभाव से यह मंद पड़ जाती है|
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परमात्मा की कृपा और आशीर्वाद से मेरे मन में अब मूर्च्छा से जागने और लक्ष्य की ओर सदा निरंतर अग्रसर होने की अभीप्सा तीब्र रूप से जागृत हो रही है| परम सत्य को जानने की प्यास से अत्यधिक व्याकुल होने लगा हूँ| अब वह आध्यात्मिक प्यास बुझने तक इधर-उधर कुछ भी नहीं देखना है| जो भूलें और प्रमाद हो चुका है वह तो हो चुका है, आगे नहीं होने देना है|
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मुझे पता है कि मेरा स्वधर्म क्या है, व मुझे और आगे क्या करना है| कोई संदेह नहीं है| एक ही डर है कि मार्ग में कहीं नींद न आ जाए, और कोई बात नहीं है| परमात्मा की कृपा और गुरुओं का आशीर्वाद सदा मेरे साथ है| आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार स्वरुप हैं| आप सब को नमन! आप सब का आशीर्वाद और कृपा मुझ अकिंचन पर बनी रहे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० अप्रेल २०१८
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बहुत अधिक अटक गया था, भटका तो नहीं, पर अभीप्सा की अग्नि मंद पड़ गयी थी| परमात्मा उसे बापस प्रज्ज्वलित कर रहे हैं| अभीप्सा की अग्नि मंद पड़ने के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं| अब परमात्मा ने सोते से जगा दिया है, और उसका उपचार कर रहे हैं| अब और नहीं अटक सकता|
"सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा"
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हर मनुष्य का अपना अपना अलग अलग स्वधर्म होता है क्योंकि स्वधर्म वैयक्तिक होता है, सामूहिक नहीं| हम सर्वप्रथम तो यह ज्ञात करें कि हमारा स्वधर्म क्या है, फिर उस पर पूर्ण संकल्प के साथ दृढ़ता से डटे रहें, कोई समझौता नहीं| कथनी और करनी में कहीं अंतर न हो| फिर स्वधर्म का जो लक्ष्य है, उसे प्राप्त करने की प्रबल प्रचंड अभीप्सा हृदय में सदा प्रज्ज्वलित रहे| उस अभीप्सा को नित्य निरंतर प्रज्ज्वलित करते रहें| कहीं उसकी लौ मंद न पड़ जाए| यह अभीप्सा ही हमें अपने लक्ष्य तक ले जायेगी| यह अभीप्सा एक ऐसी प्यास है जो लक्ष्य को पाए बिना तृप्त नहीं होती| पर प्रतिकूल वातावरण के प्रभाव से यह मंद पड़ जाती है|
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परमात्मा की कृपा और आशीर्वाद से मेरे मन में अब मूर्च्छा से जागने और लक्ष्य की ओर सदा निरंतर अग्रसर होने की अभीप्सा तीब्र रूप से जागृत हो रही है| परम सत्य को जानने की प्यास से अत्यधिक व्याकुल होने लगा हूँ| अब वह आध्यात्मिक प्यास बुझने तक इधर-उधर कुछ भी नहीं देखना है| जो भूलें और प्रमाद हो चुका है वह तो हो चुका है, आगे नहीं होने देना है|
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मुझे पता है कि मेरा स्वधर्म क्या है, व मुझे और आगे क्या करना है| कोई संदेह नहीं है| एक ही डर है कि मार्ग में कहीं नींद न आ जाए, और कोई बात नहीं है| परमात्मा की कृपा और गुरुओं का आशीर्वाद सदा मेरे साथ है| आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार स्वरुप हैं| आप सब को नमन! आप सब का आशीर्वाद और कृपा मुझ अकिंचन पर बनी रहे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० अप्रेल २०१८
अपने उपास्य के साथ एकाकार होने की अभीप्सा, ध्यान और समर्पण ही मेरा "स्वधर्म" है, अन्य कुछ भी नहीं. ॐ ॐ ॐ
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