Thursday, 3 May 2018

स्वयं परमात्मा ही हमारी रक्षा कर सकते हैं, पर उनके प्रति समर्पित तो हमें ही होना होगा .....

स्वयं परमात्मा ही हमारी रक्षा कर सकते हैं, पर उनके प्रति समर्पित तो हमें ही होना होगा .....
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कभी कभी तो लगता है कि परमात्मा की माया उनकी एक मुस्कान मात्र है, पर यह प्रश्न भी उठता है कि हम इस संसार में इतने सारे कष्टों के साक्षी होने को बाध्य क्यों हैं? जिन भी आत्माओं से हमारा जुड़ाव होता है, उनके कष्ट हमें विचलित कर देते हैं|
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कभी लगता है कि जब हम यह देह ही नहीं हैं तो कौन हमारा परिजन है? सब के अपने अपने प्रारब्ध हैं, सबका अपना अपना भाग्य है| सभी अपने कर्मों का फल भोगने को जन्म लेते हैं| पूर्व जन्मों के शत्रु और मित्र अगले जन्मों में या तो एक ही परिवार या समाज में जन्म लेते हैं या फिर पुनश्चः आपस में एक दूसरे से मिलते हैं, और पुराना हिसाब किताब चुकाते हैं| यह बात सभी पर लागू होती है| किसी का कष्ट कम है, किसी का अधिक, कष्ट तो सब को है|
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आध्यात्म मार्ग के पथिकों को कष्ट कुछ अधिक ही होते हैं| "विक्षेप" व "आवरण" नाम की राक्षसियाँ, और "राग", "द्वेष" व "अहंकार" नाम के महा असुर, भयावह कष्ट देते हैं| इनसे बचने का प्रयास करते हैं तो ये अपने अनेक भाई-बंधुओं सहित आकर बार बार हमें चारों खाने चित गिरा ही देते हैं| ये कभी नहीं हटते, स्थायी रूप से यहीं रहते हैं| इनके साथ संघर्ष करते है तो ये हमें अपनी बिरादरी में ही मिला लेने का प्रयास करते हैं|
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स्वयं परमात्मा ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| उनके प्रति हम शरणागत हैं| समर्पित होने के लिए और कर ही क्या सकते हैं?

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मई २०१८

1 comment:

  1. 'इदं सर्व तत् सत्यं स आत्मा तत्त्वमसि श्वेतकेतो' (छां. ६.११,१२).
    (तूँ ही वह चिदानंद ब्रह्म है, हे श्वेतकेतु)

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