Monday, 13 February 2017

परमात्मा के प्रेम में हम स्वयं प्रेममय हो जाएँ .....

परमात्मा के प्रेम में हम स्वयं प्रेममय हो जाएँ .....
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वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जो भगवान से प्रेम करते करते स्वयं प्रेममय हो जाते हैं| इस परमप्रेम की परिणिति ही आनंद है| सबसे बड़ा, सर्वश्रेष्ठ, महानतम, दिव्य प्रेम और रोमांस ..... परमात्मा के साथ किया गयां प्रेम है|
कितना सुन्दर और प्रिय लगेगा जब हम परमात्मा को सर्वत्र पाएंगे, जब भगवान स्वयं हमसे बातचीत करेंगे और हमारा मार्गदर्शन करेंगे| यहाँ किसी दार्शनिकता और वाद-विवाद में पड़ने की आवश्यकता नहीं है| किसी से किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता भी नहीं है| बस प्रभु को प्रेम करो जो सर्वत्र व्याप्त है, जो सब के ह्रदय में धड़क रहा है, कण कण में व्याप्त है और पूरे जीवन का स्त्रोत है|
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यही भारत की परम्परा है जहाँ एक से बढ़ कर एक प्रभुप्रेमी हुए हैं| हमारे आदर्श भारतवर्ष के असंख्य भक्त ही हो सकते हैं, कोई वेलेंटाइन पादरी नहीं|
जैसे जैसे हम भगवान को प्रेम करेंगे वैसे वैसे ही वे हमारी रक्षा और मार्गदर्शन भी करेंगे, हमारा सारा भार भी वे ही ले लेंगे| बस सिर्फ भगवान् से प्रेम करो| प्रेम की उच्चतम आदर्श अभिव्यक्ति श्रीराधा जी और हनुमान जी द्वारा हुई है| उनके ह्रदय में जो प्रेम था उसका एक कणमात्र भी हमें धन्य कर देगा| भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण साक्षात प्रेम हैं| उन्हें अपने ह्रदय में स्थान दो और दिन रात उनका निरंतर चिंतन करो और प्रेममय हो जाओ| यही हमारा परम धर्म है|
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मैं जो बात कह रहा हूँ अपने अनुभव से कह रहा हूँ कोई निरी कल्पना नहीं है| खूब दुनिया देखी है| जीवन का सार भगवान की भक्ति में ही है, अन्य किसी विषय में नहीं|
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आप सब मेरी ही निजात्मा हो, आप सब भगवान के अंश हो, आप सब को मेरे ह्रदय का गहनतम प्यार समर्पित है|
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर

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