परमात्मा का मार्ग .......
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जहाँ तक मेरी सीमित और अल्प बुद्धि सोच सकती है, सुषुम्ना पथ ही परमात्मा का मार्ग है| सुषुम्ना मार्ग से सहस्त्रार और ब्रह्मरंध्र पार कर अनंत ब्रह्म से एकाकार होना योगमार्ग की साधना है|
सभी योगी जो परमात्मा के साक्षात्कार हेतु ध्यान साधना करते हैं, साधनाकाल में अपना मेरुदंड यानि कमर सीधी रखते है और भ्रूमध्य में दृष्टी स्थिर रखते हैं|
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जहाँ तक मेरी सीमित और अल्प बुद्धि सोच सकती है, सुषुम्ना पथ ही परमात्मा का मार्ग है| सुषुम्ना मार्ग से सहस्त्रार और ब्रह्मरंध्र पार कर अनंत ब्रह्म से एकाकार होना योगमार्ग की साधना है|
सभी योगी जो परमात्मा के साक्षात्कार हेतु ध्यान साधना करते हैं, साधनाकाल में अपना मेरुदंड यानि कमर सीधी रखते है और भ्रूमध्य में दृष्टी स्थिर रखते हैं|
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इसका कारण यह है कि जब इन्द्रियों से चेतना हटने लगती है तो प्राण ऊर्जा, आध्यात्मिक नेत्र जिसे तृतीय नेत्र भी कह सकते हैं जो दोनों भौतिक नेत्रों के मध्य में है के और आज्ञाचक्र के मध्य की ओर स्वतः निर्देशित होती है| आध्यात्मिक नेत्र ----- आज्ञा चक्र (जो मस्तिकग्रंथी/मेरुशीर्ष यानि Medulla Oblongata में है) का प्रतिबिम्ब है| आज्ञा चक्र से प्रकाश दोनों आँखों में आता है| भ्रूमध्य में ध्यान से वह प्रकाश भ्रूमध्य में स्थिर रूप से दिखना आरम्भ हो जाता है और योगी की चेतना ब्राह्मीचेतना होने लगती है और ज्योतिर्मय ब्रह्म का आभास होने लगता है| अनाहत नाद भी धीरे धीरे सुनाई देने लगता है|
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भावजगत में सम्पूर्ण समष्टि के साथ स्वयं को एकाकार करें| आप यह देह नहीं बल्कि परमात्मा की अनंतता और उनका सम्पूर्ण प्रेम हैं| शिवनेत्र होकर कूटस्थ में सर्वव्यापी सद्गुरु रूप शिव का ध्यान करें|
निष्ठावान मुमुक्षु का सारा मार्गदर्शन निश्चित रूप से भगवान स्वयं करते हैं और उसकी रक्षा भी होती है| आपकी सारी जिज्ञासाओं के उत्तर और सारी समस्याओं का समाधान परमात्मा में ही मिलेगा|
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यहाँ तक की और इससे आगे की प्रगति साधक गुरु रूप में परमात्मा की कृपा से ही कर सकता है|
गुरुकृपा का पात्र साधक तभी हो सकता है जब उसके आचार विचार सही हों, व भक्ति और समर्पण की पूर्ण भावना हो|
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हठयोग की साधनाओं का उद्देश्य यही है कि साधक स्वस्थ हो और सुषुम्ना पथ पर अग्रसर हो|
पर सबसे महत्वपूर्ण है ----- भक्ति यांनी प्रभु के प्रति परम प्रेम, और उन्हें समर्पित होने की प्रबल अभीप्सा|
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हे परमशिव प्रभु, आप सब का कल्याण करो, आपकी सृष्टि में सब सुखी हों, कोई दुःखी ना हो, सबके ह्रदय में आपके प्रति परम प्रेम जागृत हो, और सब आनंदमय हों|
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ॐ नमः शिवाय! ॐ शिव! ॐ ॐ ॐ||
इसका कारण यह है कि जब इन्द्रियों से चेतना हटने लगती है तो प्राण ऊर्जा, आध्यात्मिक नेत्र जिसे तृतीय नेत्र भी कह सकते हैं जो दोनों भौतिक नेत्रों के मध्य में है के और आज्ञाचक्र के मध्य की ओर स्वतः निर्देशित होती है| आध्यात्मिक नेत्र ----- आज्ञा चक्र (जो मस्तिकग्रंथी/मेरुशीर्ष यानि Medulla Oblongata में है) का प्रतिबिम्ब है| आज्ञा चक्र से प्रकाश दोनों आँखों में आता है| भ्रूमध्य में ध्यान से वह प्रकाश भ्रूमध्य में स्थिर रूप से दिखना आरम्भ हो जाता है और योगी की चेतना ब्राह्मीचेतना होने लगती है और ज्योतिर्मय ब्रह्म का आभास होने लगता है| अनाहत नाद भी धीरे धीरे सुनाई देने लगता है|
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भावजगत में सम्पूर्ण समष्टि के साथ स्वयं को एकाकार करें| आप यह देह नहीं बल्कि परमात्मा की अनंतता और उनका सम्पूर्ण प्रेम हैं| शिवनेत्र होकर कूटस्थ में सर्वव्यापी सद्गुरु रूप शिव का ध्यान करें|
निष्ठावान मुमुक्षु का सारा मार्गदर्शन निश्चित रूप से भगवान स्वयं करते हैं और उसकी रक्षा भी होती है| आपकी सारी जिज्ञासाओं के उत्तर और सारी समस्याओं का समाधान परमात्मा में ही मिलेगा|
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यहाँ तक की और इससे आगे की प्रगति साधक गुरु रूप में परमात्मा की कृपा से ही कर सकता है|
गुरुकृपा का पात्र साधक तभी हो सकता है जब उसके आचार विचार सही हों, व भक्ति और समर्पण की पूर्ण भावना हो|
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हठयोग की साधनाओं का उद्देश्य यही है कि साधक स्वस्थ हो और सुषुम्ना पथ पर अग्रसर हो|
पर सबसे महत्वपूर्ण है ----- भक्ति यांनी प्रभु के प्रति परम प्रेम, और उन्हें समर्पित होने की प्रबल अभीप्सा|
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हे परमशिव प्रभु, आप सब का कल्याण करो, आपकी सृष्टि में सब सुखी हों, कोई दुःखी ना हो, सबके ह्रदय में आपके प्रति परम प्रेम जागृत हो, और सब आनंदमय हों|
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ॐ नमः शिवाय! ॐ शिव! ॐ ॐ ॐ||
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