मैं कौन हूँ ? ..... दिव्यतम परम चैतन्य .....
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कल्पना कीजिये अधिकतम तापमान जहाँ सब कुछ भस्म हो जाए, कोई भौतिक अवशेष भी न बचे, उससे भी परे जहाँ सारे अणु-परमाणु भी विखंडित हो जाएँ, उस दिव्यतम ऊर्जा, चेतना और विचार से भी परे जो अचिन्त्य है, जो सूक्ष्मतम से विराटतम समस्त अस्तित्व का स्त्रोत है ..... वह परमात्मा है|
वह ही हमारी गति है और वह ही हमारा साध्य, उपास्य और सर्वस्व है|
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उसने स्वयं को ओंकार रूप में व्यक्त किया है जिससे समस्त अस्तित्व की सृष्टि हुई है| ओंकार ही जिसको उपलब्ध होने का मार्ग है ........ वह अन्य कोई नहीं, अंतरतम में हम स्वयं हैं| हम यह देह या कोई विचार नहीं, उससे भी परे का जो अचिन्त्य रूप है वह ही हैं|
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उस चैतन्य की एक झलक मिलते ही, उसका आभास होते ही, निरंतर उसकी चेतना में बने रहना भी स्वाभाविक सहज ध्यान साधना है|
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हम स्वयं ही सम्पूर्ण सृष्टि हैं| जो भी सृष्ट हुआ है और जो नहीं भी हुआ है वह स्वयं हम ही हैं| जो भी सुख, आनंद, प्रेम और समृद्धि हम ढूँढ रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| हम स्वयं सच्चिदानंद परम ब्रह्म और परम शिव हैं| हम यह देह नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व हैं|
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त्यागी कौन ????? .....
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वास्तव में असली त्यागी तो संसारी लोग हैं, जिन्होनें नश्वर सांसारिक सुखों के लिए और अपने अहंकार की तृप्ति के लिए परमात्मा को त्याग रखा है|
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कर्म प्रधान विश्व की रचना ......
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“कर्म प्रधान विस्व रचि राखा, जो जस करहिं तो तस फल चाखा”
ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है| हम जो सोचते हैं, जैसा विचार करते हैं वह ही हमारा कर्म है| हर सोच, हर विचार फलीभूत होता है| हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है| अतः अपने विचारों और अपनी सोच का निरंतर ध्यान रखें| हमारी हर सोच, हर विचार और हर भाव ही हमारी सृष्टि है| ॐ ॐ ॐ ||
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सार .....
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इस सृष्टि में सब कुछ परमात्मा का है| कोई हमारा नहीं है और हम किसी के नहीं हैं| एक दिन अचानक ही सब कुछ छूट जाएगा और सिर्फ परमात्मा ही हमारे साथ रहेंगे| अतः जब तक उसका दिया समय है उसमें उसको उपलब्ध हो जाना ही सार है|
उस अनंत यात्रा के लिए अभी से स्वयं को तैयार करना ही सार्थकता है|
हे प्रभु, तुम कितने सुन्दर हो! कृपा करो| ॐ ॐ ॐ ||
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आप सब परमात्म रुपी निज आत्माओं को नमन !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
16फरवरी2016
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कल्पना कीजिये अधिकतम तापमान जहाँ सब कुछ भस्म हो जाए, कोई भौतिक अवशेष भी न बचे, उससे भी परे जहाँ सारे अणु-परमाणु भी विखंडित हो जाएँ, उस दिव्यतम ऊर्जा, चेतना और विचार से भी परे जो अचिन्त्य है, जो सूक्ष्मतम से विराटतम समस्त अस्तित्व का स्त्रोत है ..... वह परमात्मा है|
वह ही हमारी गति है और वह ही हमारा साध्य, उपास्य और सर्वस्व है|
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उसने स्वयं को ओंकार रूप में व्यक्त किया है जिससे समस्त अस्तित्व की सृष्टि हुई है| ओंकार ही जिसको उपलब्ध होने का मार्ग है ........ वह अन्य कोई नहीं, अंतरतम में हम स्वयं हैं| हम यह देह या कोई विचार नहीं, उससे भी परे का जो अचिन्त्य रूप है वह ही हैं|
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उस चैतन्य की एक झलक मिलते ही, उसका आभास होते ही, निरंतर उसकी चेतना में बने रहना भी स्वाभाविक सहज ध्यान साधना है|
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हम स्वयं ही सम्पूर्ण सृष्टि हैं| जो भी सृष्ट हुआ है और जो नहीं भी हुआ है वह स्वयं हम ही हैं| जो भी सुख, आनंद, प्रेम और समृद्धि हम ढूँढ रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| हम स्वयं सच्चिदानंद परम ब्रह्म और परम शिव हैं| हम यह देह नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व हैं|
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त्यागी कौन ????? .....
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वास्तव में असली त्यागी तो संसारी लोग हैं, जिन्होनें नश्वर सांसारिक सुखों के लिए और अपने अहंकार की तृप्ति के लिए परमात्मा को त्याग रखा है|
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कर्म प्रधान विश्व की रचना ......
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“कर्म प्रधान विस्व रचि राखा, जो जस करहिं तो तस फल चाखा”
ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है| हम जो सोचते हैं, जैसा विचार करते हैं वह ही हमारा कर्म है| हर सोच, हर विचार फलीभूत होता है| हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है| अतः अपने विचारों और अपनी सोच का निरंतर ध्यान रखें| हमारी हर सोच, हर विचार और हर भाव ही हमारी सृष्टि है| ॐ ॐ ॐ ||
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सार .....
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इस सृष्टि में सब कुछ परमात्मा का है| कोई हमारा नहीं है और हम किसी के नहीं हैं| एक दिन अचानक ही सब कुछ छूट जाएगा और सिर्फ परमात्मा ही हमारे साथ रहेंगे| अतः जब तक उसका दिया समय है उसमें उसको उपलब्ध हो जाना ही सार है|
उस अनंत यात्रा के लिए अभी से स्वयं को तैयार करना ही सार्थकता है|
हे प्रभु, तुम कितने सुन्दर हो! कृपा करो| ॐ ॐ ॐ ||
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आप सब परमात्म रुपी निज आत्माओं को नमन !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
16फरवरी2016
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