Saturday, 3 December 2016

हमारे प्रारब्ध कर्मों का फल .....

हम जो कुछ भी हैं और जैसी भी परिस्थिति में हैं वह हमारे प्रारब्ध कर्मों का फल यानि भोग है, इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है| ये प्रारब्ध कर्म तो भोगने ही पड़ेंगे, इन्हें टाल नहीं सकते| हाँ, भक्ति से पीड़ा कम अवश्य हो जाती है, पर टलती नहीं है| प्रकृति अपना कार्य पूरी ईमानदारी से अपने नियमानुसार करती है जिसमें कोई भेदभाव नहीं है| नियमों को हम नहीं समझते तो इसमें दोष अपना ही है, प्रकृति का नहीं|
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अपने असंतोष और अप्रसन्नता के लिए हम यदि ....
(1) अपने माँ-बाप को दोष देते हैं तो हम गलत हैं| कई लोग कहते हैं कि हम गलत माँ-बाप के घर या गलत परिवार/समाज में पैदा हो गए, इसलिए जीवन में प्रगति नहीं कर पाए|
(2) कई लोग स्वयं को परिस्थितियों का शिकार बताते हैं और कहते हैं गलत परिस्थितियों के कारण जीवन में जो मिलना चाहिए था वह नहीं मिला| यह सोच गलत है|
(3) कई लोग अपनी विफलताओं के लिए दूसरों को दोष देते हैं, यह भी गलत है|
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अपने कर्मफलों को प्रेम से, आनन्द से और भक्ति से भगवान का नाम लेते हुए काटें और अपनी सोच बदल कर अच्छे कर्म करें| हमारी सोच और विचार ही हमारे कर्म हैं| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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