आगे उत्थान ही उत्थान है, अब और पतन नहीं है ...........
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मुझे बार बार बहुत दृढ़ता से परमात्मा की कृपा से यह अनुभूति होती है कि सनातन धर्म और भारतवर्ष का जितना पतन हो सकता था वह हो चुका है, अब आगे और नहीं होगा| मानवता का भी जितना पतन होना था वह हो गया है, अब और नहीं होगा| वैसे आसुरी शक्तियाँ हर युग में रही हैं, कभी कम और कभी अधिक| पर अब धीरे धीरे असत्य और अन्धकार की शक्तियां क्षीण होने लगी हैं|
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यह बात मैं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त लोगों से नहीं करना चाहता क्योंकी वे अपनी सुनी सुनाई मान्यताओं पर इतने दुराग्रही हैं कि मतभेद होते ही अपनी बात को मनवाने के लिए चिल्लाने लगते हैं और लड़ाई-झगड़े और गाली-गलौच पर उतर आते हैं|
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मेरी बात स्वतंत्र विचारकों से है जिनका चिंतन निष्पक्ष है और जो हर प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं|
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गत दो-ढाई हज़ार वर्षों से गत दो सौ वर्षों तक का समय भारत के क्रमशः पतन का था| लगभग दो-ढाई हज़ार वर्षों पूर्व हमारे समाज में धीरे धीरे सद्गुण विकृतियाँ आनी शुरू हो गयी थीं और हम कमजोर होने लगे थे| | जब से भारत पर खैबर के मार्ग से अरब व मध्य एशिया के लुटेरे आततायियों के भयानक आक्रमण होने आरम्भ हुए और अपने स्वयं की सदगुण विकृतियों के कारण हम पराभूत होने लगे वह काल अत्यंत भयानक था| क्रूर विदेशी आततायी आक्रान्ताओं का शासन भी अत्यंत भयावह था| उसमें बहुत बड़े बड़े नरसंहार हुए| बाद में लुटेरे पुर्तगाली, फ़्रांसिसी और अन्ग्रेज आये| सबसे खराब शासन अंग्रेजों का था उन्होंने हमारी कृषि और शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर भारत को धनहीन कर दिया| इन सब विदेशी लुटेरों के राज्य में बहुत सारे अकाल पड़े और बहुत सारे नरसंहार हुए|
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भारत में सनातन धर्म की रक्षा भारत में हुए भक्ति आन्दोलन और संतों के त्याग-तपस्या के कारण हुई| जब इस्लाम का जन्म हुआ तब एक सौ वर्षों के भीतर भीतर इस्लाम की पताका पूरे अरब, पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, तुर्किस्तान से चीन की सीमा तक, बेबीलोन और फारस पर छा गयी थी, पर आठ सौ वर्षों के शासन में हुए क्रूर अत्याचारों के उपरांत भी भारत को पूर्ण रूप से वे मतांतरित नहीं कर पाए| इसका एकमात्र कारण था कि उस काल में भारत में बहुत सारे संतों का जन्म हुआ और उन्होंने जनमानस की धर्म में आस्था बनाए रखी व आतंक का प्रतिकार करने की प्रेरणा दी| उस काल में ज्ञात अज्ञात हज़ारों संत अवतरित हुए| चैतन्य महाप्रभु, संत तुलसीदास, गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, स्वामी रामदास, पुरंदर दास, त्यागराज जैसे अनेक संतों ने सनातन धर्म को जीवित रखा|
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हम पराभूत हुए और गुलाम बने इसका कारण यह था कि हमने यह मान लिया कि आततायियों का प्रतिरोध/प्रतिकार और युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का कार्य है, अन्य किसी वर्ण का नहीं| सिर्फ क्षत्रिय लोग ही लड़ते, और बाकि सब तमाशा देखते रहते थे| क्षत्रिय वर्ग हार जाता तो बाकि सब लोग आक्रान्ताओं की पराधीनता स्वीकार कर लेते थे| यदि पूरा समाज एकजूट होकर हमलावरों का विरोध करता तो भारत कभी नहीं हारता और कभी पराधीन नहीं होता|
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आरोही नव युग में पदार्पण उसी दिन से आरम्भ हो गया था जिस दिन से विद्युत् , चुम्बकत्व और अणु का ज्ञान हमें हुआ| तब से मनुष्य की चेतना क्रमशः उत्तरोत्तर ऊर्ध्वमुखी हो रही है|
भौतिक ज्ञान का विकास भी उसी दिन से हो रहा है| उसी दिन से हमने विकास के आरोही चक्र पर अग्रसर होना आरम्भ कर दिया है|
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कल्पना कीजिये कि आज से पचास वर्ष पूर्व कैसा जीवन था, और उससे भी पचास वर्ष पूर्व, और उससे भी पचास वर्ष पूर्व ...... इस तरह भूतकाल में हजार साल तक में चलते जाइए, और फिर बापस आइये| आप पायेंगे कि पिछले दो सौ वर्षों से मनुष्य की चेतना का तीब्र गति से विकास हुआ है|
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मैं औरों की तो कह नहीं सकता, अपने स्वयं के जीवन के बारे में ही बताना चाहता हूँ| मैं जब पंद्रह वर्ष की आयु का हुआ तब हमारे गाँव में बिजली आई थी, उससे पहिले लालटेन, चिमनी और दीपक से ही रात्रि में प्रकाश होता था| अब तो सौर ऊर्जा की बात हो रही है| तेरह-चौदह वर्ष की उम्र में मैंने पहली बार रेलगाड़ी में यात्रा की थी तब कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कभी गाँव से बाहर कहीं घूम फिर भी पाऊंगा क्या? फिर भगवान ने अवसर दिया तो ऐसा दिया कि विदेशों में भी बहुत रहा, विश्व के अधिकाँश देशों की व वहाँ के महत्वपूर्ण स्थानों की यात्राएं की, और पूरी पृथ्वी की परिक्रमा जलमार्ग से की| किशोरावस्था तक भूगोल का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था, पर अब दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव तक पूरी पृथ्वी का भूगोल मेरे दिमाग में है| पृथ्वी के हर भाग की जलवायु और सामाजिक जीवन आदि का ज्ञान हुआ है| जीवन में वैज्ञानिक प्रगति को इतनी शीघ्रता से आगे बढ़ता हुआ देख रहा हूँ कि उसके साथ कदम मिला कर चलना भी असंभव है| ज्ञान विज्ञान और चेतना बहुत तीब्र गति से आगे बढ़ रही है| आध्यात्मिक प्रगति भी खूब हुई है| आजकल गीता और वेदान्त का ज्ञान जितनी तेजी से फैल रहा है उतना पहले कभी नहीं हुआ था|
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फिर जो आज की नई पीढ़ी है वह बहुत अधिक कुशाग्र है| आजकल के बच्चों का दिमाग बहुत तेज है| जो विषय सीखने में मुझे दो दिन लगते हैं, आजकल के बच्चे उसे आधा घंटे में ही समझ जाते हैं| अतः निश्चित रूप से हम आगे बढ़ रहे हैं, पीछे नहीं हट रहे हैं| दिनों दिन जो नई पीढ़ी आयेगी वह बहुत होशियार होगी|
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अतः यह बात तो मैं दावे से कह सकता हूँ की हम आगे बढ़ रहे हैं, पीछे नहीं हट रहे| अन्धकार और अज्ञान कम हो रहा है| सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी खूब हो रहा है|
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अब जो बात लिखने जा रहा हूँ उस को कोई माने या न माने पर मैं इस बारे में आश्वस्त हूँ|
एक विराट आध्यात्मिक शक्ति भारत में अवतरित हो रही है जो पुनश्चः धर्म को पुनर्स्थापित करेगी|
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आप सोचेंगे कि इतने दुर्जन, विघटनकारी, एवम् अधार्मिक तत्व हैं तो यह कैसे संभव है|
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यह कार्य सम्पन्न होगा संतों के संकल्प से| उनका ब्रह्मतेज एक परावर्तन लाएगा| इस कार्य में सूक्ष्म रूप से भगवान के अवतार, देवी-देवता, सप्त चिरंजीवी एवं गुप्त सिद्ध योगी सहायता करेंगे|
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मुझे बार बार बहुत दृढ़ता से परमात्मा की कृपा से यह अनुभूति होती है कि सनातन धर्म और भारतवर्ष का जितना पतन हो सकता था वह हो चुका है, अब आगे और नहीं होगा| मानवता का भी जितना पतन होना था वह हो गया है, अब और नहीं होगा| वैसे आसुरी शक्तियाँ हर युग में रही हैं, कभी कम और कभी अधिक| पर अब धीरे धीरे असत्य और अन्धकार की शक्तियां क्षीण होने लगी हैं|
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यह बात मैं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त लोगों से नहीं करना चाहता क्योंकी वे अपनी सुनी सुनाई मान्यताओं पर इतने दुराग्रही हैं कि मतभेद होते ही अपनी बात को मनवाने के लिए चिल्लाने लगते हैं और लड़ाई-झगड़े और गाली-गलौच पर उतर आते हैं|
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मेरी बात स्वतंत्र विचारकों से है जिनका चिंतन निष्पक्ष है और जो हर प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं|
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गत दो-ढाई हज़ार वर्षों से गत दो सौ वर्षों तक का समय भारत के क्रमशः पतन का था| लगभग दो-ढाई हज़ार वर्षों पूर्व हमारे समाज में धीरे धीरे सद्गुण विकृतियाँ आनी शुरू हो गयी थीं और हम कमजोर होने लगे थे| | जब से भारत पर खैबर के मार्ग से अरब व मध्य एशिया के लुटेरे आततायियों के भयानक आक्रमण होने आरम्भ हुए और अपने स्वयं की सदगुण विकृतियों के कारण हम पराभूत होने लगे वह काल अत्यंत भयानक था| क्रूर विदेशी आततायी आक्रान्ताओं का शासन भी अत्यंत भयावह था| उसमें बहुत बड़े बड़े नरसंहार हुए| बाद में लुटेरे पुर्तगाली, फ़्रांसिसी और अन्ग्रेज आये| सबसे खराब शासन अंग्रेजों का था उन्होंने हमारी कृषि और शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर भारत को धनहीन कर दिया| इन सब विदेशी लुटेरों के राज्य में बहुत सारे अकाल पड़े और बहुत सारे नरसंहार हुए|
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भारत में सनातन धर्म की रक्षा भारत में हुए भक्ति आन्दोलन और संतों के त्याग-तपस्या के कारण हुई| जब इस्लाम का जन्म हुआ तब एक सौ वर्षों के भीतर भीतर इस्लाम की पताका पूरे अरब, पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, तुर्किस्तान से चीन की सीमा तक, बेबीलोन और फारस पर छा गयी थी, पर आठ सौ वर्षों के शासन में हुए क्रूर अत्याचारों के उपरांत भी भारत को पूर्ण रूप से वे मतांतरित नहीं कर पाए| इसका एकमात्र कारण था कि उस काल में भारत में बहुत सारे संतों का जन्म हुआ और उन्होंने जनमानस की धर्म में आस्था बनाए रखी व आतंक का प्रतिकार करने की प्रेरणा दी| उस काल में ज्ञात अज्ञात हज़ारों संत अवतरित हुए| चैतन्य महाप्रभु, संत तुलसीदास, गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, स्वामी रामदास, पुरंदर दास, त्यागराज जैसे अनेक संतों ने सनातन धर्म को जीवित रखा|
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हम पराभूत हुए और गुलाम बने इसका कारण यह था कि हमने यह मान लिया कि आततायियों का प्रतिरोध/प्रतिकार और युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का कार्य है, अन्य किसी वर्ण का नहीं| सिर्फ क्षत्रिय लोग ही लड़ते, और बाकि सब तमाशा देखते रहते थे| क्षत्रिय वर्ग हार जाता तो बाकि सब लोग आक्रान्ताओं की पराधीनता स्वीकार कर लेते थे| यदि पूरा समाज एकजूट होकर हमलावरों का विरोध करता तो भारत कभी नहीं हारता और कभी पराधीन नहीं होता|
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आरोही नव युग में पदार्पण उसी दिन से आरम्भ हो गया था जिस दिन से विद्युत् , चुम्बकत्व और अणु का ज्ञान हमें हुआ| तब से मनुष्य की चेतना क्रमशः उत्तरोत्तर ऊर्ध्वमुखी हो रही है|
भौतिक ज्ञान का विकास भी उसी दिन से हो रहा है| उसी दिन से हमने विकास के आरोही चक्र पर अग्रसर होना आरम्भ कर दिया है|
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कल्पना कीजिये कि आज से पचास वर्ष पूर्व कैसा जीवन था, और उससे भी पचास वर्ष पूर्व, और उससे भी पचास वर्ष पूर्व ...... इस तरह भूतकाल में हजार साल तक में चलते जाइए, और फिर बापस आइये| आप पायेंगे कि पिछले दो सौ वर्षों से मनुष्य की चेतना का तीब्र गति से विकास हुआ है|
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मैं औरों की तो कह नहीं सकता, अपने स्वयं के जीवन के बारे में ही बताना चाहता हूँ| मैं जब पंद्रह वर्ष की आयु का हुआ तब हमारे गाँव में बिजली आई थी, उससे पहिले लालटेन, चिमनी और दीपक से ही रात्रि में प्रकाश होता था| अब तो सौर ऊर्जा की बात हो रही है| तेरह-चौदह वर्ष की उम्र में मैंने पहली बार रेलगाड़ी में यात्रा की थी तब कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कभी गाँव से बाहर कहीं घूम फिर भी पाऊंगा क्या? फिर भगवान ने अवसर दिया तो ऐसा दिया कि विदेशों में भी बहुत रहा, विश्व के अधिकाँश देशों की व वहाँ के महत्वपूर्ण स्थानों की यात्राएं की, और पूरी पृथ्वी की परिक्रमा जलमार्ग से की| किशोरावस्था तक भूगोल का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था, पर अब दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव तक पूरी पृथ्वी का भूगोल मेरे दिमाग में है| पृथ्वी के हर भाग की जलवायु और सामाजिक जीवन आदि का ज्ञान हुआ है| जीवन में वैज्ञानिक प्रगति को इतनी शीघ्रता से आगे बढ़ता हुआ देख रहा हूँ कि उसके साथ कदम मिला कर चलना भी असंभव है| ज्ञान विज्ञान और चेतना बहुत तीब्र गति से आगे बढ़ रही है| आध्यात्मिक प्रगति भी खूब हुई है| आजकल गीता और वेदान्त का ज्ञान जितनी तेजी से फैल रहा है उतना पहले कभी नहीं हुआ था|
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फिर जो आज की नई पीढ़ी है वह बहुत अधिक कुशाग्र है| आजकल के बच्चों का दिमाग बहुत तेज है| जो विषय सीखने में मुझे दो दिन लगते हैं, आजकल के बच्चे उसे आधा घंटे में ही समझ जाते हैं| अतः निश्चित रूप से हम आगे बढ़ रहे हैं, पीछे नहीं हट रहे हैं| दिनों दिन जो नई पीढ़ी आयेगी वह बहुत होशियार होगी|
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अतः यह बात तो मैं दावे से कह सकता हूँ की हम आगे बढ़ रहे हैं, पीछे नहीं हट रहे| अन्धकार और अज्ञान कम हो रहा है| सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी खूब हो रहा है|
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अब जो बात लिखने जा रहा हूँ उस को कोई माने या न माने पर मैं इस बारे में आश्वस्त हूँ|
एक विराट आध्यात्मिक शक्ति भारत में अवतरित हो रही है जो पुनश्चः धर्म को पुनर्स्थापित करेगी|
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आप सोचेंगे कि इतने दुर्जन, विघटनकारी, एवम् अधार्मिक तत्व हैं तो यह कैसे संभव है|
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यह कार्य सम्पन्न होगा संतों के संकल्प से| उनका ब्रह्मतेज एक परावर्तन लाएगा| इस कार्य में सूक्ष्म रूप से भगवान के अवतार, देवी-देवता, सप्त चिरंजीवी एवं गुप्त सिद्ध योगी सहायता करेंगे|
प्रकृति भी अपने विनाशक विकराल रूपमें दुर्जनों का संहार करेगी|
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हम संधिकाल के द्वार पर खड़े हैं| यह प्रक्रिया सफल हो इसके लिए आप भी साधना करें| हो सकता है निकट भविष्य में दुर्जनों के साथ अनेक सज्जन भी विनाश की बली चढ़ जाएँ, अतः उनकी रक्षा के लिए भी आप भी प्रार्थना करें|
इति |
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ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
01/12/2015
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हम संधिकाल के द्वार पर खड़े हैं| यह प्रक्रिया सफल हो इसके लिए आप भी साधना करें| हो सकता है निकट भविष्य में दुर्जनों के साथ अनेक सज्जन भी विनाश की बली चढ़ जाएँ, अतः उनकी रक्षा के लिए भी आप भी प्रार्थना करें|
इति |
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ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
01/12/2015
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