एक आदर्श स्थिति वह होती है जब भगवान स्वयं ही आपके प्रेम में पड़ जाते हैं|
तब आप उन को प्रेम नहीं करते, वे ही आपसे प्रेम करने लगते हैं|
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प्रभु तो प्रेम प्रवाह हैं, उन्हें अपने में प्रवाहित होने दो|
आप स्वयं ही वह प्रेम हैं, आप ही वह प्रवाह हैं, और वास्तव में आप तो हैं ही नहीं, मात्र वे ही वे हैं|
वे ही साधक हैं, वे ही साध्य हैं और वे ही साधना हैं|
दृश्य भी वे ही हैं, दृष्टा भी वे ही हैं और दर्शन भी वे ही हैं|
आप में और उन में कोई भेद नहीं है| यही पूर्ण समर्पण है| इस समर्पण के कर्ता भी आप नहीं, वे ही हैं जो स्वयं को स्वयं के प्रति समर्पित कर रहे हैं|
ॐ ॐ ॐ ||
तब आप उन को प्रेम नहीं करते, वे ही आपसे प्रेम करने लगते हैं|
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प्रभु तो प्रेम प्रवाह हैं, उन्हें अपने में प्रवाहित होने दो|
आप स्वयं ही वह प्रेम हैं, आप ही वह प्रवाह हैं, और वास्तव में आप तो हैं ही नहीं, मात्र वे ही वे हैं|
वे ही साधक हैं, वे ही साध्य हैं और वे ही साधना हैं|
दृश्य भी वे ही हैं, दृष्टा भी वे ही हैं और दर्शन भी वे ही हैं|
आप में और उन में कोई भेद नहीं है| यही पूर्ण समर्पण है| इस समर्पण के कर्ता भी आप नहीं, वे ही हैं जो स्वयं को स्वयं के प्रति समर्पित कर रहे हैं|
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