Saturday 3 December 2016

मैं और कूटस्थ चैतन्य .....

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
(1) कूटस्थ-चैतन्य ही मेरा अदृष्य आश्रम है, कूटस्थ-चैतन्य ही मेरा अदृष्य घर, मंदिर, निवास और तीर्थ है | कूटस्थ-चैतन्य ही मेरा आश्रय है | कूटस्थ-चैतन्य ही मेरा इष्ट है और कूटस्थ-चैतन्य ही मेरा उपास्य है | परमात्मा की परम चेतना ही मेरा कूटस्थ है |
.
(2) मेरे विचार ही मेरे श्रोता हैं जिन्हें मैं बताता हूँ कि उन्हें क्या सोचना है|
मेरे विचारों को मैं आदेश देता हूँ कि कभी नकारात्मक मत सोचो और सरल जीवन जीओ |

अपने विचारों को ही मैं बताता हूँ कि सृष्टि में मूल रूप से कोई पापी नहीं है, सभी परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, परमात्मा को भूलना ही पाप है और परमात्मा का स्मरण ही पुण्य है | परमात्मा को भूलकर तुम कभी प्रसन्न नहीं हो सकते |
अपने विचारों को ही मैं बताता हूँ कि पूरी सृष्टि तुम्हारा परिवार है जहाँ शांति से रहो, तुम्हारे में कोई कमी नहीं है, यही तुम्हारा धर्म और जीवन है |
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment