गुरु, शिष्य और परमात्मा ..... तत्व रूप में सब एक ही हैं, उनका आभास ही
पृथक पृथक है| गुरु सब नाम, रूप और उपाधियों से परे है| गुरु ही ब्रह्म
है, गुरु ही वासुदेव है और गुरु ही परमशिव है| आध्यात्म में तत्व को अनुभूत
किया जा सकता है पर उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता|
उदाहरण के लिए यदि हम अपनी आँखों को देखना चाहें तो नहीं देख सकते| पर एक दर्पण को मुख के सामने लें तो आँखें दिखाई दे जाएँगी|
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गहन ध्यान में जब हमारी चेतना इस भौतिक देह से परे परमात्मा की सर्वव्यापकता के साथ एक हो जाती है और अखंड ब्रह्माकार वृत्ति बन जाती है, उस समय जो बोध होता है वह तत्वज्ञान है| जिसका बोध हुआ वह तो प्रतिबिम्ब है, परन्तु जिसका हमने बोध किया वह तत्व रूप में हम स्वयं हैं| यहीं पर गुरु, शिष्य और परमात्मा सब एक हो जाते हैं| परमात्मा ही है जो सभी में और सर्वत्र प्रतिबिंबित हो रहा है| इसे गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग का सहारा लेना पडेगा|
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प्रिय निजात्मगण, आप सब में प्रतिबिंबित गुरु और परमात्मा को नमन |
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमःशिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
उदाहरण के लिए यदि हम अपनी आँखों को देखना चाहें तो नहीं देख सकते| पर एक दर्पण को मुख के सामने लें तो आँखें दिखाई दे जाएँगी|
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गहन ध्यान में जब हमारी चेतना इस भौतिक देह से परे परमात्मा की सर्वव्यापकता के साथ एक हो जाती है और अखंड ब्रह्माकार वृत्ति बन जाती है, उस समय जो बोध होता है वह तत्वज्ञान है| जिसका बोध हुआ वह तो प्रतिबिम्ब है, परन्तु जिसका हमने बोध किया वह तत्व रूप में हम स्वयं हैं| यहीं पर गुरु, शिष्य और परमात्मा सब एक हो जाते हैं| परमात्मा ही है जो सभी में और सर्वत्र प्रतिबिंबित हो रहा है| इसे गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग का सहारा लेना पडेगा|
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प्रिय निजात्मगण, आप सब में प्रतिबिंबित गुरु और परमात्मा को नमन |
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमःशिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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