मेरा स्वधर्म -- एक ही है, और वह है निमित्त मात्र रहते हुए निरंतर परमात्मा का स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और निज चैतन्य में उनकी सतत् अभिव्यक्ति। वे ही कर्ता हैं और वे ही भोक्ता हैं। मैं केवल साक्षी मात्र हूँ, वास्तव में साक्षी भी वे ही हैं; मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। मेरा धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नर्क, कष्ट और आनंद सब कुछ यही है, इससे अतिरिक्त मैं अन्य कुछ भी नहीं जानता हूँ; और जानना भी नहीं चाहता।
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समाज और राष्ट्र की मेरी अवधारणा -- वह नहीं है जो आधुनिक पश्चिमी विचारक कहते हैं, या जो पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाई जाती है। इसे समझने के लिए महाभारत और रामायण का स्वाध्याय करना पड़ेगा। तभी इस विषय को हम ठीक से समझ पायेंगे। हमारा दृष्टिकोण भारतीय हो, न कि ईसाई विचारकों द्वारा हम पर थोपा हुआ।
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यह हमारा दायित्व है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे शासक धर्मनिष्ठ हों। शासक का सर्वोपरी दायित्व धर्म की रक्षा है, न कि अपने अहंकार की पूर्ति। हम कुछ भी करने में असमर्थ हैं तो अपने दृढ़ संकल्प और आध्यात्मिक साधना के बल पर करें। जो धर्मनिष्ठ नहीं हैं, उन्हें हटायें, और धर्मनिष्ठ शासकों को लायें। हमारे शासक हमारी प्रजा हैं, बाकी सब उनकी प्रजा। किसी भी राजनीतिक विचारधारा के मानसिक दास न बनें। धर्म की स्थापना का कार्य भगवान हमारे ही माध्यम से करेंगे। यह याद रखें कि हमारे शासक हमारी ही प्रजा हैं, न कि हम उनकी प्रजा। जो धर्म कि रक्षा नहीं कर सकता वह अयोग्य शासक है। सबसे पहिले हम अपने निज जीवन में धर्म को अवतरित करें, फिर भगवान हमारे माध्यम से धर्म की पुनःस्थापना करेंगे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२४
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पुनश्च: --- सनातन धर्म को सबसे अधिक खतरा ईसाई विचारकों से है जो विचारधारा के स्तर पर हमारा सबसे अधिक अहित करते हैं। सनातन धर्म का सबसे अधिक अहित ईसाई विचारकों, प्रचारकों और शासकों ने किया है। यह मार्क्सवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षतावाद आदि उन्हीं के शैतानी दिमाग की उपज है। उन्होने ही हमारे शास्त्रों में मिलावट की और हमें नीचा दिखाने के लिए हमारे विरुद्ध अत्यधिक दुष्प्रचार किया। इस समय वे लोगों का मतांतरण कर हमारे धर्म को नष्ट कर रहे हैं।
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यह विचार कि हमारे शासक हमारी ही प्रजा हैं, मुझे माननीय प्रोफेसर श्री रामेश्वर मिश्र 'पंकज' जी से मिला जो एक युगपुरुष और महान विचारक हैं।
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