अब इसी क्षण से लैपटॉप और मोबाइल का उपयोग न्यूनतम। ये सब रामभक्ति में बाधक हैं। भगवान से संवाद हेतु इनकी आवश्यकता नहीं है।
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पुनश्च: --- मुझे नित्य निरंतर आंतरिक प्रेरणा मिल रही है कि जब तक शरीर में प्राण है, तब तक किसी भी परिस्थिति में मुझे नित्य कम से कम छः घंटे परमात्मा का ध्यान करना ही पड़ेगा। यह एक ईश्वरीय आदेश है, अतः इसका पालन करना ही होगा। कुछ बातों को सपष्ट करना आवश्यक है, इसीलिए यह संवाद कर रहा हूँ।
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प्राण क्या है? इस देह में प्राणों को किसने धारण कर रखा है?
जगन्माता, जिन्होने इस सृष्टि को धारण कर रखा है, वे ही मेरा प्राण हैं। स्पष्ट शब्दों में कुंडलिनी महाशक्ति ही मेरा प्राण है। जिस क्षण वे परमशिव से मिल जायेंगी, उसी क्षण मैं भी परमात्मा को प्राप्त कर उनके साथ एक हो जाऊंगा। वे मेरे मेरुदण्ड की सुषुम्ना नाड़ी की ब्रह्म उपनाड़ी में सचेतन रूप से विचरण कर रही हैं। साकार रूप में वे ही भगवती श्रीराधा हैं, वे ही सीता जी हैं, वे ही उमा हैं, और वे ही तंत्र की दसों महाविद्याएँ हैं। यह शरीर महाराज उन्हीं की कृपा से इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ वाहन है। मुझे लोग इस नश्वर शरीर महाराज के रूप में ही जानते हैं।
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परमशिव क्या है?
परमशिव एक अनुभूति है जो गहन समाधि की अवस्था में गुरुकृपा से होती है। यह अपरिभाष्य और अवर्णनीय है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। साकार रूप में वे ही शिव और विष्णु हैं। सारा विश्व उन्हीं का रूप है। वे ही यह विश्व बन गए हैं।
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गणेश जी क्या हैं?
पञ्चप्राण ही उनके गण है, वे ओंकार रूप में इन सब गणों के अधिपति हैं, इसलिए वे गणेश हैं। उनका ध्यान मूलाधार चक्र में उनके मंत्रों से होता है। भगवती बाला की उपासना भी मूलाधार चक्र में होती है।
कुंडलिनी महाशक्ति भी गुरुकृपा से मूलाधार चक्र में ही जागृत होती है। योग मार्ग में सूक्ष्म प्राणायाम (जो एक गोपनीय विद्या है, जिसे गुरुमुख से ही प्राप्त किया जाता है) द्वारा कुंडलिनी जागरण होता है, और श्रीविद्या की साधना में गोपनीय मंत्रों के द्वारा। दोनों मार्गों में सद्गुरु का मार्गदर्शन और संरक्षण आवश्यक है।
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ओंकार का ध्यान कैसे होता है?
इसके लिए श्रीमद्भगवद्गीता का और उपनिषदों का स्वाध्याय कीजिये। यदि आपके कर्म अच्छे होंगे तो जीवन में किसी सद्गुरु का अवतरण होगा जो आपको परमात्मा से जोड़ देगा। सद्गुरु की पहिचान यही होती है कि वह अपने चेले को परमात्मा से जोड़ देता है।
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शेष कुशल। मंगलमय शुभ कामनाएँ। आपका जीवन कृतार्थ हो, व आप कृतकृत्य हों।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ हरिः ॐ॥ ॐ तत्सत्॥
२ सितंबर २०२४
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