हमारा सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र कौन है?
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आप सब का अभिनंदन और अभिवादन॥ इस समय हम विचार कर रहे हैं कि हमारे सबसे बड़े शत्रु और मित्र कौन हैं। इस विषय पर मुंडकोपनिषद, योगदर्शन, और श्रीमद्भगवद्गीता में मार्गदर्शन उपलब्ध है।
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सार रूप में -- "आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक", हर स्तर पर "आत्मरक्षा" और "आत्मोत्थान" -- हमारे सबसे बड़े कर्तव्य और सबसे बड़े दायित्व हैं। हमारे अपने स्वयं के बुरे विचार ही हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं, और हमारे अपने स्वयं के अच्छे विचार ही हमारे सबसे बड़े मित्र हैं।
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हमारे विचारों में काम-वासना और लोभ -- हमारे पतन के मुख्य कारण हैं। ये हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं। इनसे हम अपनी निरंतर रक्षा करें। फिर हमारे चारों ओर का वातावरण भी हमारे अनुकूल हो। इसका भी निरंतर प्रयास करें। परमात्मा को स्वयं में व्यक्त करने की अभीप्सा हमारी सबसे बड़ी मित्र है।
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हमारा सबसे बड़ा अहित तो हमारे धर्म-निरपेक्ष, नास्तिक और अधर्मी शासकों ने किया है, जिन्होंने धर्म-शिक्षा से हमें वंचित कर रखा है। यही हमारे विनाश का सबसे बड़ा कारण होगा। अधर्म से हम अपनी रक्षा करें। हमारी रक्षा हमारा धर्म ही कर सकता है। धर्म एक ही है, अनेक नहीं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३१ अगस्त २०२४
कुरुक्षेत्र का युद्ध निरंतर हमारी चेतना में चल रहा है ---
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भगवान के हरेक भक्त को कुरुक्षेत्र का युद्ध निमित्त मात्र बन कर (भगवान को कर्ता बनाकर) स्वयं लड़ना ही पड़ेगा। इसका कोई विकल्प नहीं है। यह युद्ध हमें जीतना ही होगा। पूर्ण विजय से अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ही हमारे मार्गदर्शक गुरु और एकमात्र कर्ता हैं।
(१) कौरव सेना कौन है? :--- जो भी शक्ति हमें परमात्मा से दूर ले जाती है, वह कौरव सेना है।
(२) पांडव सेना कौन हैं? :--- जो भी शक्ति हमें परमात्मा से जोड़ती है, वह पांडव सेना है। युधिष्ठिर शांति, भीम बल, अर्जुन आत्मानुशासन, नकुल सन्मार्ग, और सहदेव हर तरह की बुराई से दूर रहने के प्रतीक हैं।
यह युद्ध हमें जीतना ही है। भगवान हमारे साथ हैं। हम विजयी होंगे। कभी कभी अज्ञान का अंधकार हमें घेर लेता है, जो वास्तव में असत्य का अंधकार है। वह ज्ञान की ज्योति के समक्ष नहीं टिक सकता। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर