भारत की जय होगी क्योंकि यहाँ धर्म की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है| समय आ गया है जब असत्य और अन्धकार की आसुरी शक्तियाँ पराभूत होंगी व धर्म की पुनर्स्थापना होगी|
.
जिससे हमारा सम्पूर्ण सर्वोच्च विकास और सब तरह के दुःखों/कष्टों से मुक्ति हो वही धर्म है| यह धर्म की हिंदू परिभाषा और यही वास्तविकता है| धर्म एक ऊर्ध्वमुखी भाव है जो हमें परमात्मा से संयुक्त करता है|
.
"यथो अभ्युदय निःश्रेयस् सिद्धि स धर्म" ..... जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि हो वही धर्म है| धर्म की यह परिभाषा कणाद ऋषि ने वैशेषिकसूत्रः में की है जो हिंदू धर्म के षड्दर्शनों में से एक है|
.
हम अपने स्वधर्म का पालन करें, क्योंकि गीता में यह भगवान की आज्ञा है .....
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||
इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है| इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है||
.
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् || (मनुस्मृति)
जो मनुष्य धर्म की हत्या करता है, धर्म उसका नाश करता है। इसलिये धर्म की रक्षा करना चाहिए ताकि हमारी रक्षा हो सके.
.
'यतो धर्मस्ततो जयः' .... महाभारत में यह वाक्य अनेक बार आया है| जहाँ धर्म है वहीं जय है| धर्म की जय और अधर्म का नाश होगा| भारतवर्ष ही धर्म है और धर्म ही भारतवर्ष है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ मई २०१९
.
जिससे हमारा सम्पूर्ण सर्वोच्च विकास और सब तरह के दुःखों/कष्टों से मुक्ति हो वही धर्म है| यह धर्म की हिंदू परिभाषा और यही वास्तविकता है| धर्म एक ऊर्ध्वमुखी भाव है जो हमें परमात्मा से संयुक्त करता है|
.
"यथो अभ्युदय निःश्रेयस् सिद्धि स धर्म" ..... जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि हो वही धर्म है| धर्म की यह परिभाषा कणाद ऋषि ने वैशेषिकसूत्रः में की है जो हिंदू धर्म के षड्दर्शनों में से एक है|
.
हम अपने स्वधर्म का पालन करें, क्योंकि गीता में यह भगवान की आज्ञा है .....
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||
इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है| इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है||
.
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् || (मनुस्मृति)
जो मनुष्य धर्म की हत्या करता है, धर्म उसका नाश करता है। इसलिये धर्म की रक्षा करना चाहिए ताकि हमारी रक्षा हो सके.
.
'यतो धर्मस्ततो जयः' .... महाभारत में यह वाक्य अनेक बार आया है| जहाँ धर्म है वहीं जय है| धर्म की जय और अधर्म का नाश होगा| भारतवर्ष ही धर्म है और धर्म ही भारतवर्ष है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ मई २०१९
No comments:
Post a Comment