Friday 21 September 2018

वेदांत दर्शन, साधन चतुष्टय और संत आशीर्वाद :--

वेदांत दर्शन, साधन चतुष्टय और संत आशीर्वाद :--
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यह बात मैं पूरे दावे के साथ अपने अनुभव से कह रहा हूँ कि वेदान्त दर्शन को सिर्फ स्वाध्याय से तब तक कोई भी ठीक से नहीं समझ सकता जब तक किसी श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध महात्मा का आशीर्वाद प्राप्त न हो| तपस्वी महात्माओं के आशीर्वाद से प्राप्त अनुभूतियों से वेदान्त स्वतः भी समझ में आ सकता है| अतः एक मुमुक्षु को संतों का सदा सत्संग करना चाहिए|
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वैसे वेदान्त में प्रवेश के लिए साधन चतुष्टय यानी चार योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है|
वे हैं .....
(१) नित्यानित्य विवेक.
(२) वैराग्य.
(३) षड्गुण/षट सम्पत्ति... (शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति, और तितिक्षा).
(४) मुमुक्षुत्व.
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रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं .....
"बिनु सत्संग विवेक न होई| राम कृपा बिनु सुलभ न सोई||"
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भगवान से प्रेम करेंगे तो भगवान की कृपा होगी और भगवान की कृपा होगी तो सत्संग लाभ भी होगा| सत्संग लाभ होगा तो विवेक जागृत होगा, और विवेक जागृत होगा तो वैराग्य भी होगा| वैराग्य और अभ्यास से छओं सदगुण भी आयेंगे और मुमुक्षुत्व भी जागृत होगा| फिर साधक जितेन्द्रिय हो जाता है और भोगों की आसक्ति नष्ट हो जाती है|
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इस दिशा में पहला कदम है .... परमप्रेम जो सिर्फ परमात्मा से ही हो सकता है| अपने पूर्ण ह्रदय से अपना पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें, फिर सारे द्वार अपने आप ही खुल जायेंगे, सारे दीप अपने आप ही जल उठेंगे, और सारा अन्धकार भी अपने आप ही नष्ट हो जाएगा||

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० सितम्बर २०१८

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