मेरी दृष्टी से एक आदर्श दिनचर्या :---
.
१) प्रातःकाल इस भाव से उठें जैसे माँ भगवती की गोद में सोये हुए थे और उन्हीं की गोद में से सो कर उठ रहे हैं| सिर के नीचे कोई तकिया नहीं बल्कि माँ का बायाँ हाथ है और सिर के ऊपर उनके प्रेममय दायें हाथ की हथेली है जिस से वे हमें प्रेम करते हुए आशीर्वाद भी दे रही हैं|
.
(२) किसी भी तरह का कोई अहंकार व दंभ न हो|
.
(३) उठते ही दो बार में धीरे धीरे एक लम्बी गहरी सांस लें और कुछ क्षणों के लिए पूरे शरीर को तनाव से भरकर प्राण तत्व से भरे होने का संकल्प करें| अधिक से अधिक पांच सेकंड्स तक ही यह तनाव रखें, फिर धीरे धीरे शरीर को शिथिल करें पर शरीर प्राण तत्व से भरपूर रहे|
.
(४) एक गिलास गुनगुने शुद्ध जल का पीयें और आवश्यक हो तो लघुशंका आदि से निवृत हो लें|
.
(५) एक कम्बल के शुद्ध आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ, मेरुदंड उन्नत, मुख पूर्व दिशा की ओर, ठुड्डी भूमि के समानांतर, दृष्टिपथ भ्रूमध्य में और चेतना ... आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य उत्तरा सुषुम्ना में हो|
(आज्ञाचक्र की स्थिति :-- ठुड्डी भूमि के समानांतर हो तो दोनों कानों के मध्य से थोड़ा पीछे की ओर खोपड़ी के पीछे के भाग में| वहाँ छूते ही पता चल जाता है|)
(सहस्त्रार की स्थिति :-- ठुड्डी भूमि के समानांतर हो तो दोनों कानों के मध्य से खोपड़ी के सबसे ऊपर का भाग| वहां अँगुलियों से छूने पर ब्रह्मरंध्र की स्थिति का पता चल जाता है|)
(जो योगसाधना करते हैं, उनके लिए आज्ञाचक्र ही हृदय है| जीवात्मा का निवास भी आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में है|)
.
(६) पूर्ण प्रेम से अपनी चेतना को सारे ब्रह्मांड में फैला दें, सारी सृष्टि को उस से आच्छादित कर दें| वह अनंत विस्तार ही हम हैं, उस विस्तार का ध्यान करें| अजपा-जप का अभ्यास करें, गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र का खूब मानसिक जप करें, परमात्मा के सर्वव्यापी अपने प्रियतम रूप का ध्यान कर उसी में स्वयं को विलीन कर दें| (इस से आगे का मार्गदर्शन स्वयं भगवान किसी न किसी तरह पात्रतानुसार अवश्य करेंगे|)
.
(७) किसी भी तरह का कोई भय न हो| साक्षात जगन्माता माँ भगवती हमारी रक्षा कर रही है| कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| पूरे दिन हमारा सत्य व्यवहार और परमात्मा का निरंतर स्मरण हो|
.
(८) रात्री को पुनश्चः गहरा ध्यान कर के माँ भगवती की गोद में वैसे ही सो जायें जैसे एक अबोध बालक अपनी माँ की गोद में सोता है|
.
सायं व प्रातः यथासंभव अधिकाधिक समय ध्यान करें| रात्री को सोने से पूर्व फिर से एक बार गहरा ध्यान अवश्य करें| परमात्मा को जीवन का केंद्रबिंदु, एकमात्र कर्ता और सर्वस्व बनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ सितम्बर २०१८
.
१) प्रातःकाल इस भाव से उठें जैसे माँ भगवती की गोद में सोये हुए थे और उन्हीं की गोद में से सो कर उठ रहे हैं| सिर के नीचे कोई तकिया नहीं बल्कि माँ का बायाँ हाथ है और सिर के ऊपर उनके प्रेममय दायें हाथ की हथेली है जिस से वे हमें प्रेम करते हुए आशीर्वाद भी दे रही हैं|
.
(२) किसी भी तरह का कोई अहंकार व दंभ न हो|
.
(३) उठते ही दो बार में धीरे धीरे एक लम्बी गहरी सांस लें और कुछ क्षणों के लिए पूरे शरीर को तनाव से भरकर प्राण तत्व से भरे होने का संकल्प करें| अधिक से अधिक पांच सेकंड्स तक ही यह तनाव रखें, फिर धीरे धीरे शरीर को शिथिल करें पर शरीर प्राण तत्व से भरपूर रहे|
.
(४) एक गिलास गुनगुने शुद्ध जल का पीयें और आवश्यक हो तो लघुशंका आदि से निवृत हो लें|
.
(५) एक कम्बल के शुद्ध आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ, मेरुदंड उन्नत, मुख पूर्व दिशा की ओर, ठुड्डी भूमि के समानांतर, दृष्टिपथ भ्रूमध्य में और चेतना ... आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य उत्तरा सुषुम्ना में हो|
(आज्ञाचक्र की स्थिति :-- ठुड्डी भूमि के समानांतर हो तो दोनों कानों के मध्य से थोड़ा पीछे की ओर खोपड़ी के पीछे के भाग में| वहाँ छूते ही पता चल जाता है|)
(सहस्त्रार की स्थिति :-- ठुड्डी भूमि के समानांतर हो तो दोनों कानों के मध्य से खोपड़ी के सबसे ऊपर का भाग| वहां अँगुलियों से छूने पर ब्रह्मरंध्र की स्थिति का पता चल जाता है|)
(जो योगसाधना करते हैं, उनके लिए आज्ञाचक्र ही हृदय है| जीवात्मा का निवास भी आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में है|)
.
(६) पूर्ण प्रेम से अपनी चेतना को सारे ब्रह्मांड में फैला दें, सारी सृष्टि को उस से आच्छादित कर दें| वह अनंत विस्तार ही हम हैं, उस विस्तार का ध्यान करें| अजपा-जप का अभ्यास करें, गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र का खूब मानसिक जप करें, परमात्मा के सर्वव्यापी अपने प्रियतम रूप का ध्यान कर उसी में स्वयं को विलीन कर दें| (इस से आगे का मार्गदर्शन स्वयं भगवान किसी न किसी तरह पात्रतानुसार अवश्य करेंगे|)
.
(७) किसी भी तरह का कोई भय न हो| साक्षात जगन्माता माँ भगवती हमारी रक्षा कर रही है| कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| पूरे दिन हमारा सत्य व्यवहार और परमात्मा का निरंतर स्मरण हो|
.
(८) रात्री को पुनश्चः गहरा ध्यान कर के माँ भगवती की गोद में वैसे ही सो जायें जैसे एक अबोध बालक अपनी माँ की गोद में सोता है|
.
सायं व प्रातः यथासंभव अधिकाधिक समय ध्यान करें| रात्री को सोने से पूर्व फिर से एक बार गहरा ध्यान अवश्य करें| परमात्मा को जीवन का केंद्रबिंदु, एकमात्र कर्ता और सर्वस्व बनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ सितम्बर २०१८
अकेले ध्यान साधना करने की अपेक्षा समूह में ध्यान करना अधिक फलदायी व अधिक सरल होता है| इस से एक-दूसरे के स्पंदन एक-दूसरे की सहायता करते हैं| एक ही साधना पद्धति के अनुयायियों द्वारा कम से कम सप्ताह में एक दिन तो एक निश्चित समय और निश्चित स्थान पर सत्संग और सामूहिक ध्यान साधना करनी ही चाहिए|
ReplyDeleteमैं नित्य नियमित रूप से मंदिरों में जाने का पूर्ण समर्थक हूँ| नित्य कुछ समय के लिए मंदिर में अवश्य जाना चाहिए, इस से भक्तिभाव तो बना ही रहता है, भक्तों के दर्शन भी हो जाते हैं| आरती के समय मंदिर में जाना बहुत शुभ होता है|