Friday 21 September 2018

साधू , सावधान ! यह एक चेतावनी है, आगे खतरा ही खतरा है .....

साधू , सावधान ! यह एक चेतावनी है, आगे खतरा ही खतरा है .....
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"ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते| संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते||२:६२||"
"क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः| स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति||२:६३||"
श्रुति भगवती भी सचेत कर रही है .....
"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत| क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति||" (कठोपनिषद् १:३:१४)
भय की बात नहीं है| भगवान आश्वासन भी दे रहे हैं .....
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||
तुरंत उठ ! वैराग्यवान होकर सिर्फ परमात्मा का चिंतन कर ! दोष विषयों में नहीं बल्कि उनके चिंतन में है |
ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१३ सितम्बर २०१८
,
पुनश्चः .....
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साधू, सावधान ! ....
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मुझे भय है कि कहीं मैं बुद्धि-विलास, शब्दजाल और विकृत विद्वता के अरण्य में तो नहीं भटक गया हूँ| यदि यह कणमात्र भी सत्य है, तो अभी इसी क्षण से मुझे संभल कर इस जंजाल से निकलना होगा|
कृपा शंकर
१८ फरवरी २०१९ 
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वाग्वैखरी शब्दझरीशास्त्रव्याख्यान कौशलम्| वैदुष्यं विदुषां तद्वद्द्भुक्तये न तु मुक्तये||"
(विवेक चूड़ामणि—६०)
विद्वानों की वाणी की कुशलता, शब्दों की धारावाहिकता, शास्त्र व्याख्या की कुशलता और विद्वत्ता, भोग ही का कारण हो सकती है, मोक्ष का नहीं।‘
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शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम्| अतः प्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञात्तत्त्वमात्मनः||"
(विवेक चूड़ामणि—६२)
शब्द जाल (वेद-शास्त्रादि) तो चित्त को भटकाने वाला एक महान् वन है, इस लिए किन्हीं तत्त्व ज्ञानी महापुरुष से यत्न पूर्वक ‘आत्मतत्त्वम्’ को जानना चाहिए।
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अज्ञानसर्पदष्टस्य ब्रम्हज्ञानौषधम् बिना किमु वेदैश्च शास्त्रैश्च किमु मंत्रै: किमौषधै ||"
(विवेक चूड़ामणि---६३)
अज्ञान रूपी सर्प से डँसे हुए को ब्रम्ह ज्ञान रूपी औषधि के बिना वेद से, शास्त्र से, मंत्र से क्य लाभ?
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"वदन्तुशास्त्राणि यजन्तु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तुदेवता:।
आत्मैक्यबोधेनविना विमुक्तिर्न सिध्यतिब्रम्हशतान्तरेsपि।।"
(विवेक चूड़ामणि--६)
‘भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करे, देवताओं का भजन करे, नाना शुभ कर्म करे अथवा देवताओं को भजे, तथापि जब तक आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध नहीं होगा, तब तक सौ ब्रम्हा के बीत जाने पर भी (अर्थात् सौ कल्प में भी) मुक्ति नहीं हो सकती।‘
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"अविज्ञाते परेतत्त्वे शास्त्राधीतिस्तुनिष्फला| विज्ञातेsपिपरेतत्त्वे शास्त्राधीतिस्तुनिष्फला||"
(विवेक चूड़ामणि---६१)
‘परमतत्त्वम् को यदि न जाना तो शास्त्रायध्ययन निष्फल (व्यर्थ) ही है और यदि परमतत्त्वम् को जान लिया तो भी शास्त्र अध्यन निष्फल (अनावश्यक) ही है।
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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