Friday 5 August 2016

हम अपनी मनःस्थितियों व भावावेशों से क्यों दुखी होते हैं ? ......

हम अपनी मनःस्थितियों व भावावेशों से क्यों दुखी होते हैं ? ......
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यह बात पूर्णतः वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है कि हमारी तरह तरह की मनःस्थितियों (Moods) और भावावेशों (अचानक भयंकर क्रोध आना) का कारण भूतकाल यानि पूर्व में हमारा इन्द्रिय सुखों में अत्यधिक लिप्त होना, और अपेक्षाओं की पूर्ति न होने व असहायता की भावना से उत्पन्न कुंठा ही है|
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इन मनःस्थितियों से किसी भी परिस्थिति में बचना चाहिए, अन्यथा ये पुनश्चः भूतकाल की यादें दिलाते हुए भ्रमित कर हमें पतन के मार्ग पर डाल देंगी|
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यह विषय इतना गंभीर है कि मुझे अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे हैं, अतः ठीक से लिख नहीं पा रहा हूँ| फिर भी प्रयास कर रहा हूँ|
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जब भी ऐसी मनःस्थिति उत्पन्न हो हमें उसका मानसिक रूप से प्रतिरोध करना चाहिए| इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में सिखाई गयी निःस्पृहता का अभ्यास करना होगा| यह एक साधना का विषय है अतः गीता का निरंतर गहन अध्ययन और नित्य नियमित ध्यान साधना करनी चाहिए|
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परमात्मा की कृपा सब पर बनी रहे| प्राण तत्व के रूप में परमात्मा सभी जीवों और जड़-चेतन सभी में व्याप्प्त है| प्रभु की आरोग्यकारी उपस्थिति सभी के देह, मन और आत्मा में प्रकट हो| सभी का कल्याण हो|
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ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

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