भगवान शिव के शीश से निरंतर गंगाजी क्यों बहती है .......
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गंगा का अर्थ है --- ज्ञान|
हमारे पंचकोषात्मक (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय) देह के मस्तिष्क में ज्ञान गंगा नित्य विराजमान है|
भगवान शिव तो परम चैतन्य के प्रतीक ही नहीं स्वयं परम चैतन्य हैं|
समस्त सृष्टि के उद्भव और संहार यानि सर्जन-विसर्जन की क्रिया ---- उनका नृत्य है|
परमात्मा की ऊंची से ऊंची परिकल्पना जो एक विराट से विराट मनुष्य का मस्तिष्क कर सकता है वह भगवान शिव का स्वरुप है|
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उनके माथे पर चन्द्रमा ----------- कूटस्थ चैतन्य का,
गले में सर्प ------------------------ कुण्डलिनी महाशक्ति का,
उनकी दिगंबरता ------------------ सर्वव्यापकता का,
और देह पर भभूत ----------------- वैराग्य का,
उनके हाथ में त्रिशूल --------------- त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का,
गले में विष ------------------------ स्वयं अमृतमय होने का,
ऐसे ही उनके माथे पर गंगा जी ---- समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है|
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जिस तरह मनुष्य के मस्तिष्क में ज्ञान और बुद्धिमता का भंडार भरा पड़ा है वैसे ही सर्व व्यापक भगवान शिव के माथे पर सम्यक चैतन्य की आधार माँ गंगाजी नित्य विराजमान और निरंतर प्रवाहित हैं जो सबका कल्याण कर रही हैं|
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जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभायमान है,जो कामदेव के भस्मकर्ता हैं, जो गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते हैं, जिनके कंठ एवं कर्णयुगल सर्पों द्वारा आभूषित हैं, जिनके नयनों से अग्निज्योति की छटाएं निकलती हैं, जो मृगचर्मधारी हैं और जो समस्त त्रिलोक के सारभूत हैं, ऐसे सुन्दर भगवान शिव के ऊपर हे नर, अपनी चित्तवृत्ति को अर्पित कर| किसी अन्य कर्म की क्या आवश्यकता है?
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गंगा का अर्थ है --- ज्ञान|
हमारे पंचकोषात्मक (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय) देह के मस्तिष्क में ज्ञान गंगा नित्य विराजमान है|
भगवान शिव तो परम चैतन्य के प्रतीक ही नहीं स्वयं परम चैतन्य हैं|
समस्त सृष्टि के उद्भव और संहार यानि सर्जन-विसर्जन की क्रिया ---- उनका नृत्य है|
परमात्मा की ऊंची से ऊंची परिकल्पना जो एक विराट से विराट मनुष्य का मस्तिष्क कर सकता है वह भगवान शिव का स्वरुप है|
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उनके माथे पर चन्द्रमा ----------- कूटस्थ चैतन्य का,
गले में सर्प ------------------------ कुण्डलिनी महाशक्ति का,
उनकी दिगंबरता ------------------ सर्वव्यापकता का,
और देह पर भभूत ----------------- वैराग्य का,
उनके हाथ में त्रिशूल --------------- त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का,
गले में विष ------------------------ स्वयं अमृतमय होने का,
ऐसे ही उनके माथे पर गंगा जी ---- समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है|
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जिस तरह मनुष्य के मस्तिष्क में ज्ञान और बुद्धिमता का भंडार भरा पड़ा है वैसे ही सर्व व्यापक भगवान शिव के माथे पर सम्यक चैतन्य की आधार माँ गंगाजी नित्य विराजमान और निरंतर प्रवाहित हैं जो सबका कल्याण कर रही हैं|
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जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभायमान है,जो कामदेव के भस्मकर्ता हैं, जो गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते हैं, जिनके कंठ एवं कर्णयुगल सर्पों द्वारा आभूषित हैं, जिनके नयनों से अग्निज्योति की छटाएं निकलती हैं, जो मृगचर्मधारी हैं और जो समस्त त्रिलोक के सारभूत हैं, ऐसे सुन्दर भगवान शिव के ऊपर हे नर, अपनी चित्तवृत्ति को अर्पित कर| किसी अन्य कर्म की क्या आवश्यकता है?
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